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४. ध्यानगुणदोषाः 331 ) मार्जाररसितप्रायं येषां वृत्तं त्रपाकरम् ।
तेषां स्वप्ने ऽपि सद्धयासिद्धिनैवोपजायते ॥४० 332 ) अनिरुद्धाक्षसंताना अजितोग्रपरीषहाः ।
अत्यक्तचित्तचापल्याः प्रस्खलन्त्यात्मनिश्चये ॥४१ 333 ) अनासादितनिर्वेदा अविद्याव्याधवञ्चिताः ।
असंवर्धितसंवेगा न विदन्ति परं पदम् ॥४२
331 ) मार्जाररसितप्रायं-येषां वृत्तं चारित्रं मारिरसितप्रायं मार्जारशब्दसदर्श निःष्पन्नं त्रपाकर लज्जाकरमिति भावः। तेषां स्वप्ने ऽपि सद्ध्यानसिद्धिर्नैवोपजायते इति सूत्रार्थः ।।४०॥ अथाजितेन्द्रियाणामात्मनिश्चयाभावमाह ।
332 ) अनिरुद्धाक्ष-एतादशा मनुष्या आत्मनिश्चये आत्मज्ञाने प्रस्खलन्ति पतन्ति । कोदशाः। अनिरुद्धाक्षसंतानाः । न निरुद्धमक्षसंतानमिन्द्रियसमूहो यैस्ते तथा। पुनः कीदृशाः अजितोग्रपरीषहाः । न जिता उग्रपरीषहा यैस्ते तथा । पुनः कोदृशाः। अत्यक्तचित्तचापल्याः, न त्यक्तं चित्तचापल्यं यस्ते तथेति सूत्रार्थः ॥४१॥ अथ केषांचित् परमपदाप्राप्तिमाह।।
333 ) अनासादितनिर्वेदा-एवंभूताः मनुष्याः परं पदं मोक्षं न विदन्ति न जानन्ति । कोदशाः । अनासादितनिर्वेदाः अप्राप्तवैराग्याः। पुनः कीदृशाः । अविद्याव्याधवश्चिताः अज्ञानश्वपाक
जिनका आचरण बिल्लीके कथनके समान लज्जाजनक है उनके समीचीन ध्यानकी सिद्धि स्वप्नमें भी नहीं हो सकती है। विशेषार्थ-बिल्लीके विषयमें यह किंवदन्ती लोकमें प्रसिद्ध है कि एक बिल्लीको जब चूहे खाने के लिए दुर्लभ हो गये तब उसने यह प्रचार प्रारम्भ किया कि मैंने अनेक तीर्थों की यात्रा करके यह नियम किया है कि अबसे मैं किसी भी चूहेका भक्षण नहीं करूँगी। बिल्लीके इस कपटपूर्ण प्रचारसे प्रभावित होकर चूहे निःशंक होकर उसके पास आने लगे और वह उन्हें खाने लगी। इससे तात्पर्य यह हुआ जिन्होंने केवल दूसरोंको ठगनेके लिए ही सदाचारिताका ढोंग धारण किया है उन अधम मनुष्योंका समीचीन ध्यान कभी भी नहीं हो सकता है ॥१०॥
जिन्होंने विषयोंकी ओरसे अपनी इन्द्रियों को नहीं रोका है, परीषहोंपर विजय प्राप्त नहीं की है, तथा चित्तकी अस्थिरताको भी नहीं रोका है वे आत्माके निश्चयमें स्खलित (च्युत ) होते हैं उन्हें कभी आत्मस्वरूपका निश्चय नहीं हो सकता है और इसीलिए वे ध्यानके पात्र नहीं हैं ॥४१॥
जिन्होंने कभी निर्वेदको प्राप्त नहीं किया है-जो संसार, शरीर और भोगोंको ओरसे विरक्त नहीं हुए हैं, जो अविवेकरूप व्याधसे ठगे गये हैं-अविवेकके कारण समीचीन मार्गके
१. M सद्धयानं सिद्धिः । २. B °न्त्यात्मसिद्धये ।
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