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२३४ ज्ञानार्णवः
[१२.४४684 ) भेत्तुं शूलमसिं छेत्तुं कर्तितुं क्रकचं दृढम् ।
नरान् पीडयितुं यन्त्रं वेधसा विहिताः स्त्रियः ॥४४ 685 ) विधुर्वधूभिर्मन्ये ऽहं नभःस्थो ऽपि प्रतारितः ।
अन्यथा क्षीयते कस्मात् कलङ्कोपहतप्रभः ॥४५ 686 ) यद्रागं संध्ययोर्धत्ते यद्भमत्यविलम्बितम् ।
तन्मन्ये वनितासाथै विप्रलब्धः खरद्युतिः ॥४६ 684 ) भेत्तं शूलं-स्त्रियः वेधसा विधात्रा नरान् भेत्तु शूलं विहिताः कृताः। कर्तृकर्मक्रियाध्याहारः सर्वत्र योज्यः । नरान् छेत्तुमसिः खङ्गः स्त्रियः विहिताः, कतितुदृढक्रकचं विहिताः। नरान् पीडयितु यन्त्रं विहिताः। इति सूत्राथः ॥४४॥ अथ ताः सर्वेषां विप्रतारयन्ति तदाह।
685 ) विधुर्वधूभिः-अहं मन्ये । वधूभिः स्त्रीभिः नभःस्थोऽपि विधुः चन्द्रः विप्रतारितः । अन्यथा नो चेत् प्रतारितः । कलङ्कोपहतक्रमः कलङ्कव्याप्तमध्यः कस्मात् क्षीयते । इति सूत्रार्थः ।।४५।। अथ पुनस्तासां विप्रतारणमाह।
686 ) यद्रागं-अहं मन्ये । खरद्युतिः सूर्यः संध्ययोः प्रातःसायंसंध्ययोः यत् रागं धत्ते, यत् अविलम्बितं भ्रमति । तत् तस्मात् कारणात् वनितासाथैः स्त्रीसमूहैः विप्रलब्धः भ्रामितः । इति सूत्रार्थः ॥४६।। अथ तासां कृते सरित्पतिकष्टतामाह ।
ब्रह्माने मनुष्योंको खण्डित करनेके लिए शूल (अस्त्रविशेष) जैसी, छेदने के लिए तलवार जैसी, काटनेके लिए आरी जैसी तथा पेलनेके लिए दृढ़ यन्त्र ( कोल्हू ) जैसी स्त्रियोंको रचा है ॥४४॥
मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आकाशमें स्थित रहनेवाला चन्द्रमा भी उन स्त्रियोंके द्वारा ठगा गया है। कारण कि यदि नहीं होता तो वह कलंकसे कान्तिहीन होकर भला किस कारणसे क्षीण होता ॥४५॥
सूर्य चूंकि दोनों सन्ध्याकालोंमें लालिमाको धारण करता है तथा निरन्तर परिभ्रमण भी करता है, इससे मैं ऐसा समझता हूँ कि वह भी स्त्रीसमूहके द्वारा ठगा गया है ॥४६॥
धैर्यशाली भी समुद्र चूंकि स्त्रीके निमित्तसे मथा गया है और बाँधा भी गया है इसीलिए भीतरसे रिक्त होकर वह वेला ( किनारा) के मिषसे रोता है और काँपता भी हैकिनारेपर टकरानेवाली लहरोंके शब्दसे मानो वह रो रहा है तथा उनकी चंचलतासे मानो काँप ही रहा है ॥ विशेषार्थ-यहाँ जो समुद्रमन्थनमें स्त्री ( विद्याधरी व लक्ष्मी ) को जो निमित्त बतलाया गया है उसकी कथा इस प्रकार है
एक बार पृथिवीपर विचरण करते हुए दुर्वासा ऋषिको एक सुन्दर विद्याधर स्त्री दिखी। उसके हाथ में सन्तानक पुष्पोंकी माला थी। उसे दुर्वासा ऋषिने उससे माँग लिया। आगे जानेपर उन्हें देवोंके साथ ऐरावत हाथीपर चढ़कर आता हुआ इन्द्र दिखा। तब
१. F कतुं क्रकचनं दृढम् । २. LSXY R कलङ्कापहत । ३. FVJ क्रमः for प्रभः । ४. FV सार्धेविप्र । ५.Vलुब्धः।
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