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-४८] १२. स्त्रीस्वरूपम्
२३५ 687 ) अन्तःशून्यो भृशं रौति वेलाव्याजेन वेपते ।
धीरो ऽपि मथितो बद्धः स्त्रीनिमित्ते सरित्पतिः ॥४७ 688 ) सुरेन्द्रप्रतिमा धीरा अप्यचिन्त्यपराक्रमाः ।
दशग्रीवादयो याताः कृते स्त्रीणां रसातलम् ।।४८ 687 ) अन्तःशून्यः-सरित्पतिः समुद्रः स्त्रीनिमित्ते भृशं रौति । वेलाव्याजेन कल्लोलकपटेन वेपते कम्पते । कथंभूतः । अन्तो मध्यः शून्यः । धोरो ऽपि मथितो बद्धः । इति सूत्रार्थः ।।४७।। अथ स्त्रीणां स्वरूपमाह।
688 ) सुरेन्द्रप्रतिमा-स्त्रीणां कृते कारणाय दशग्रीवादयो दशकन्धराद्याः पृथ्वीतलं याताः। कोदृशा दशग्रीवादयः । सुरेन्द्रप्रतिमाः सुरेन्द्रसदृशाः। धीरा अचिन्त्यपराक्रमाः। इति सूत्रार्थः ॥४८॥ पुनस्तासां निन्द्यत्वमाह । उन्होंने उस मालाको लेकर इन्द्रके ऊपर फेंक दिया। इन्द्रने उसे ऐरावत हाथीके मस्तकपर डाल दिया तथा उस हाथीने उसे सूंघकर पृथिवीके ऊपर फेंक दिया । इस प्रकार उस मालाके तिरस्कारको देखकर दुर्वासाने क्रुद्ध होते हुए इन्द्रको यह शाप दे डाला कि तेरे तीनों लोकोंकी लक्ष्मी नष्ट हो जाय । तदनुसार तीनों लोकोंकी वह श्री नष्ट हो गयी और तब श्रीहीन हो जानेसे दैत्यों द्वारा देवलोग जीत लिये गये। उस लक्ष्मीको पुनः प्राप्त करनेके लिए देव लोग ब्रह्माजीके साथ विष्णुके पास पहुंचे। वहाँ उन सबने विष्णु भगवान्की स्तुति करते हुए उनसे दर्शन देनेकी प्रार्थना की। तदनसार विष्णु भगवान के प्रगट होनेपर देवगणने अपनी नष्ट हुई लक्ष्मीको पुनः वृद्धिंगत करनेकी प्रार्थना की। इसपर विष्णु भगवान्ने उन्हें दैत्योंके साथ क्षीरसमुद्रके मन्थनका उपदेश दिया। इस प्रकार क्षीरसमुद्रका मन्थन करनेपर उसमेंसे क्रमशः कामधेनु, वारुणी देवी, कल्पवृक्ष, अप्सरासमूह, चन्द्रमा, विष, अमृतसे परिपूर्ण कमण्डलुको लिये हुए धन्वन्तरि देव और अन्तमें लक्ष्मी देवी प्रगट हुई। तब विष्णु भगवान की सहायतासे वह अमृतका कमण्डलु देवगणको प्राप्त हो गया । उसका पान करनेपर वे अतिशय बलशाली हो गये। तब उनसे पराजित होकर दैत्य सेना भाग गयी । अन्तमें इन्द्र द्वारा स्तुति करनेपर लक्ष्मी देवीने सन्तुष्ट होकर उसकी इच्छानुसार यह वर दिया कि अब मैं तेरे तीनों लोकोंको कभी नहीं छोडगी तथा जो मनुष्य मेरी स्तुति करेगा उसके मैं कभी पराङ्मुख नहीं होऊँगी। इस प्रकार लक्ष्मी जी की कृपासे तीनों लोकोंकी शोभा फिरसे पूर्ववत् हो गयी।
समुद्रका बन्धन सीताके निमित्तसे हुआ है-रामचन्द्रके वनवासके समय जब रावण सीताको हरकर समुद्रसे वेष्टित लंकामें ले गया था तब रामचन्द्र हनुमानके द्वारा इसका पता लगाकर वानरसेनाके साथ शत्रुके विनाशार्थ लंका पहुँचे थे। उस समय उन्होंने लवणसमुद्रके ऊपर सेतु ( पुल ) को बाँधा था ॥४७॥
_इन्द्र के सदृश बलशाली, धीर और अचिन्त्य पराक्रमके धारक रावण आदि स्त्रियोंके निमित्तसे नरकको प्राप्त हुए हैं ॥४८।। १. M N T व्याजेन कम्पते ।
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