Book Title: Gyanarnav
Author(s): Shubhachandra Acharya, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 320
________________ २३१ १२. स्त्रीस्वरूपम् 672 ) विनाञ्जनेन तन्त्रेण मन्त्रेण विनयेन च । वञ्चयन्ति नरं नार्यः प्रज्ञाधनमपि क्षणे॥३२ 673 ) कुलजातिगुणभ्रष्टं निकृष्टं दुष्टचेष्टितम् । अस्पृश्यमधर्म प्रायो मन्ये स्त्रीणां प्रियं नरम् ॥३३ 674 ) वैरिवारणदन्ताग्रे समारुह्य स्थिरीकृता। वीरश्रीयमहासत्वैर्यो षिद्भिस्ते ऽपि खण्डिताः ॥३४ 675 ) गौरवेषु प्रतिष्ठासु गुणेष्वाराध्यकोटिषु । धृता अपि निमज्जन्ति दोषपके स्वयं स्त्रियः ॥३५ 672 ) विनाञ्जनेन-नार्यः नरं वञ्चयन्ति । क्षणे सुरतसमये । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥३२।। अथ जात्यादिगुणहीनं स्त्रियो वाञ्छन्ति ।। 673 ) कुलजाति-अहम् एवं मन्ये । कासां । स्त्रीणाम् । एतादृशं नरं प्रियम् । प्रायो . बाहुल्येन । शेषं सुगमम् । इति सूत्रार्थः ॥३३॥ अथ स्त्रीभिः वीरा अपि खण्डिता इत्याह । 674 ) वैरिवारण-यैः महासत्त्वैः वीरश्रीः वैरिवारणदन्ताग्रे शत्रवारणदन्ताग्रभागे समारुह्य रोहित्वा स्थिरीकृता । ते ऽपि महासत्त्वा योषिद्भिः खण्डिताः। इति सूत्रार्थः ।।३४।। अथ गौरवादिगुणेषु स्थापिता अपि स्त्रियः नीचत्वं यान्तीत्याह । _____675) गौरवेषु-स्त्रियः स्वयं दोषपङ्के निमज्जन्ति । कोदृश्यः स्त्रियः । गौरवेषु प्रतिष्ठासु, वार्धक्ये, गुणेषु महत्तरादिषु, आराध्यकोटिषु आराधनीयमर्यादासु धृता अपि । इति सूत्रार्थः ॥३५॥ अथ तासां कुटिलत्वमाह ।। स्त्रियाँ अंजन, औषधि, मन्त्र, और विनयके बिना भी क्षणभर में अतिशय बुद्धिमान पुरुषको भी धोखा दिया करती हैं ॥३२॥ जो पुरुष कुल, जाति एवं गुणसे भ्रष्ट; निन्द्य, दुराचारी, छूनेके अयोग्य और हीन होता है वह प्रायः स्त्रियोंको प्रिय लगता है; ऐसा मैं मानता हूँ ॥३॥ जिन अतिशय बलशाली पुरुषोंने शत्रुके हाथीके दाँतके अग्र भागपर चढ़कर वीरलक्ष्मीको स्थिर कर दिया है वे भी स्त्रियोंके द्वारा खण्डित किये जा चुके हैं-उनको भी स्त्रियोंने अपने वशमें कर लिया है ॥३४॥ गौरव, प्रतिष्ठा और आराधनीय उत्कृष्ट गुणोंमें स्थापित की गयी भी स्त्रियाँ स्वयं दोषरूप कीचड़में निमग्न हुआ करती हैं । अभिप्राय यह है कि स्त्रियोंको उत्तम गुणोंमें प्रवृत्त करानेपर भी वे उन गुणोंमें प्रवृत्त न होकर दोषोंमें ही प्रवृत्त हुआ करती हैं ॥३॥ १. S F V क्षणं, X Y R क्षणात् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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