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ज्ञानाणंवः
[६.२८
417 ) अणुस्कन्धविभेदेन भिन्नाः स्युः पुद्गला द्विधा ।
मूर्ता वर्णरेसस्पर्शगुणोपेताश्च रूपिणः ॥२८ 418 ) किं त्वेतत् पुद्गलद्रव्यं षड्विकल्पं बुधैर्मतम् ।
स्थूलस्थूलादिभेदेन सूक्ष्मसूक्ष्मेण च क्रमात् ।।२९ 417) अणुस्कन्ध-पुद्गला अणुस्कन्धविभेदेन द्विधा । शुद्धनयेन अणूनां रूपगन्धस्पर्शानामतीन्द्रियत्वं भवति । यथा शुद्धबोधैकस्वभावसिद्धजीवे ऽनन्तचतुष्टयं तथैव शुद्धपुद्गलपरमाणुद्रव्ये रूपादीनां सद्भावो भवति । यथा रागादिस्नेहगुणेन कर्मबन्धावस्थायां ज्ञानादिचतुष्टयस्य शुद्धत्वं, तथा स्निग्धरुक्षत्वगुणेन द्वयणुकादिबन्धावस्थायां रूपादिचतुष्टयस्याशुद्धत्वम् । अत एवाह । गन्ध - रसस्पर्शगुणोपेताः परमाणुस्कन्धा इति विशेषणं युक्तम् । च पुनः। रूपिणः रूपोपेताः । पुनः कीदृशाः । मूर्ताः । इति सूत्रार्थः ॥२८॥ अथैषां स्वरूपमाह ।
418) किन्त्वेतत्-किन्तु पक्षान्तरे। एतत्पुद्गलद्रव्यं बुधैः पण्डितैः षड्विकल्पैर्मतं स्थूलस्थूलादिभेदेन । परमाणोरपेक्षया द्वयणुकं स्थूलम् । च पुनः । क्रमात् व्यणुकापेक्षया द्वयणुकः सूक्ष्मः। व्यणुकात् परमाणुः सूक्ष्मः । तेन एवमग्रे ऽपि वाच्यम् । इति सूत्रार्थः ॥२९॥ अथ धर्मादीनां प्रत्येकद्रव्यत्वमाह।
पुद्गल अणु और स्कन्धके भेदसे दो प्रकारके हैं। वे रूप, रस, गन्ध और स्पर्श से सहित होनेके कारण मूर्त या रूपी कहे जाते हैं ॥२८॥
यह पुद्गल द्रव्य विद्वानोंके द्वारा छह प्रकारका भी माना गया है। वे छह भेद क्रमसे ये हैं-स्थूलस्थूल, स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्मसूक्ष्म । विशेषार्थऊपरके श्लोकमें जो अणु और स्कन्धरूप पुद्गलके दो भेद बतलाये गये हैं उनमें स्कन्धरूप पुद्गल स्थूलस्थूल आदिके भेदसे छह प्रकारके हैं। इनमें जो पुद्गलस्कन्ध विभक्त होकर स्वयं मिल नहीं सकते हैं वे स्थूलस्थूल कहे जाते हैं। जैसे-लकड़ी व पत्थर आदि जो विभक्त होकर भी फिरसे स्वयं मिल सकते हैं वे स्थूल कहलाते हैं । जैसे-दूध, घी, तेल एवं पानी आदि । जो चक्षुसे उपलब्ध होकर भी हाथसे नहीं ग्रहण किये जा सकते हैं तथा अन्य देशको भी नहीं ले जाये जा सकते हैं उन्हें स्थूलसूक्ष्म समझना चाहिए । जैसे-छाया, आतप और अन्धकार आदि। जो सूक्ष्म होकर भी स्थूलके समान प्रतिभासित होते हैं वे सूक्ष्मस्थूल कहे जाते हैं। जैसे-स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण और शब्द । अथवा जो चक्षु इन्द्रिय के विषय न होकर शेष चार इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण किये जाते हैं उन्हें सूक्ष्मस्थूल समझना चाहिए । जो स्कन्ध किसी भी इन्द्रियके विषय नहीं हैं वे सक्ष्म कहलाते हैं। जैसे-नावरणादि कर्मवर्गणाओंके योग्य स्कन्ध जो इन कर्मवर्गणा योग्य स्कन्धों की अपेक्षा भी अतिशय सूक्ष्म हैं वे सूक्ष्मसूक्ष्म माने जाते हैं । जैसे-कर्मवर्गणा योग्य स्कन्धोंके नीचे द्वयणुक स्कन्ध तक ॥२९॥
१. BJ गन्धरस । २. LS T F VCR कि त्वेक।
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