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ज्ञानार्णवः
[४.२६२१
313 ) 'उक्तं च
ज्ञानहीना क्रिया पुंसि परं नारभते फलम् ।
तरोश्छायेव किं न स्यात् फलश्रीनष्टदृष्टिभिः ॥२६*१ 314 ) ज्ञानं पङ्गौ क्रिया चान्धे निःश्रद्धे नार्थकृद् द्वयम् ।
ततो ज्ञानं क्रिया श्रद्धा त्रयं तत्पदकारणम् ।।२६*२
अन्यैः नाभिलषते। अन्यस्य वादिनः रुचये त्रयं ज्ञानदर्शनचारित्रं न भवति । एते सप्त दुदृशः मिथ्यादृष्टयः स्मृताः इति सूत्रार्थः ।।२।। उक्तं च । ज्ञानरहिता क्रिया फलवती नेत्याह।
313 ) ज्ञानहीना क्रिया-ज्ञानहीना क्रिया चारित्रं परं फलं नारभते न प्रापयति नष्टदृष्टिभिः फलश्रीः किं लभ्या*। इवोत्प्रेक्षते । तरोः छाया इव । अपि तु न लभ्या इत्यर्थः ।।२६५१।। अथ ज्ञानचारित्रयोः स्वरूपमाह ।
_314 ) ज्ञानं पङ्गौ-ज्ञानं पगु । च पुनः । क्रिया अन्धा । निःश्रद्धे सम्यग्दर्शनरहित ज्ञानचारित्रे । अर्थकृत् शिवपददातृद्वयं ज्ञानचारित्रं न भवतीत्यर्थः । ततस्तस्मात्कारणात् । ज्ञानदर्शनचारित्रत्रयं तत्पदकारणमिति सूत्रार्थः।।२६*२॥ अथ ज्ञानचारित्रयोरन्योन्यं विना विफलत्वमाह ।
ग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र इन तीनोंकी ही पूर्णतासे होती है। परन्तु कुछ . ( सात ) मिथ्यादृष्टि ऐसे हैं जो उन तीनोंमें एक, दो अथवा तीनोंको ही मुक्तिका कारण नहीं मानते हैं। जैसे-१. सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानको ही मानता है, किन्तु सम्यक्चारित्रको नहीं मानता । २. सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्रको तो मानता है, किन्तु सम्यग्ज्ञानको नहीं मानता । ३. सम्यग्ज्ञान और चारित्रको तो मानता है, किन्तु सम्यग्दर्शनको नहीं मानता। ४. केवल सम्यग्दर्शनको ही मानता है, शेष दोको नहीं मानता। ५. केवल सम्यग्ज्ञानको ही मानता है, शेष दोको नहीं मानता। ६. केवल सम्यक्चारित्रको ही मानता है, शेष दोको नहीं मानता । ७. उन तीनोंको ही मुक्तिका कारण नहीं मानता ।।२६।। कहा भी है
ज्ञानसे रहित क्रिया पुरुषमें उत्तम फलको नहीं प्रारम्भ करती है। ठीक है-जिनकी दृष्टि नष्ट हो गयी है-जो अन्धे हैं-उन्हें क्या वृक्षकी छाया के समान फलोंकी सम्पत्ति प्राप्त हो सकती है ? उन्हें न वृक्षकी छाया प्राप्त हो सकती है और न फलसम्पत्ति भी ।।२६२१।।
लँगड़े पुरुषके ज्ञान है पर क्रिया नहीं है-वह अग्नि आदिको देख कर भी भाग नहीं सकता है; इसलिए उसका वह ज्ञान निरर्थक है। अन्धे मनुष्य में क्रिया है-वह भाग सकता है, पर ज्ञान नहीं है; इसलिए उसकी क्रिया निरर्थक है। तथा जो श्रद्धासे रहित है उसका ज्ञान और क्रिया दोनों ही व्यर्थ हैं ॥२६*२।।
१. T om. three verses । २. M N ST VcX Y R ज्ञानहोने । ३. M नालभते । ४. All others except P किं लभ्या फल । ५. M पङ्गोः, BJ पङ्गु । ६. M वान्धे ।
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