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317 ) तदुक्तम् -
ज्ञानार्णवः
इदं फलमियं क्रिया करणमेतदेषः क्रमव्ययो ऽयमनुषङ्गजं फलमिदं दशेयं मम । अयं सुहृदयं द्विषत्प्रयत देशकालादिना इति प्रतिवितर्कयन् प्रयतते बुधो नेतरः || २७१ || इति ।
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(318) यस्य प्रज्ञा स्फुरत्युच्चैरनेकान्ते च्युतभ्रमा । ध्यानसिद्धिर्विनिश्चेया तस्य साध्वी महात्मनः ॥ २८
[ ४.२७१
317 ) इदं फलमियं - इदं फलम्, इयं क्रिया, एतत्करणम्, एषः क्रमः * । यथा पश्र्वोविदा [?] फलम् । द्वैधीभावः क्रिया । कुठारः करणम् । व्ययो नाशः अयम् । इदम् अनुषंगजं प्रसंगजं फलम् । इयं दशा मम । अयं सुहृत् । अयं द्विषत् वैरी । इमो सुहृद्विषो, नियतो देशकालो ययोस्ती नियत- देशकालो" । बुधः पण्डितः । इति वितर्कयन् प्रयतते यत्नं करोति । नेतरो जनः मूर्खजनः । इति सूत्रार्थः ।।२७१ ।। अथ स्याद्वादमतावलम्बिनः ध्यान सिद्धिमाह ।
318 ) यस्य प्रज्ञा-यस्यानेकान्तवादे स्याद्वादे उच्चैः प्रज्ञा बुद्धिः स्फुरति । कोदृशी बन्ध-मोक्ष आदिकी व्यवस्था भी असम्भव हो जावेगी । इसी प्रकार शब्द और आत्मा आदिको सर्वथा नित्य माननेवाले मीमांसकों के मतमें तथा पुरुषको कूटस्थ नित्य व निर्विकार माननेवाले सांख्यों के मत में भी ये ही दोष समझने चाहिए। इसके विपरीत सब ही पदार्थोंको सर्वथा ही क्षणिक माननेवाले बौद्धोंके यहाँ भी उपयुक्त कार्य-कारणभाव और बन्ध-मोक्ष आदि की व्यवस्था नहीं बन सकती है। कारण इसका यह है कि कार्य-कारणभावकी व्यवस्थाके लिए स्मृति एवं प्रत्यभिज्ञान आदिकी आवश्यकता होती है । सो वे सर्वथा क्षणिकवाद में सम्भव नहीं हैं, क्योंकि, पूर्व में जिसका दर्शन हो चुका है उसीके विषय में स्मृति और प्रत्यभिज्ञान हुआ करते हैं । इसलिए जब तक विवक्षित पदार्थका कुछ काल तक अवस्थान न माना जावे तब तक वे सम्भव नहीं हैं। इसी प्रकार कुछ काल स्थायित्वके बिना बन्धमोक्षादिकी भी व्यवस्था नहीं बन सकती है ||२७|| कहा भी है
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विद्वान् मनुष्य यह कार्य है, यह उसकी क्रिया है, यह करण है, यह उसकी उत्पत्तिका क्रम है, यह व्यय है - पूर्व अवस्थाका विनाश है अथवा हानि है, यह आनुषंगिक फल है, यह मेरी अवस्था है, यह मित्र है, यह शत्रु है, और ये निश्चित देश - काल हैं; इस प्रकार से विचार करके ही किसी कार्यके लिए प्रयत्न करता है । परन्तु मूर्ख मनुष्य उस सबका विचार किये बिना ही कार्य में प्रवृत्त हो जाता है जो अन्तमें या तो असफल होता है या फिर अनिष्ट फलका भोक्ता होता है || २७*१॥
जिस महापुरुषकी बुद्धि भ्रान्तिको छोड़कर अनेकान्तके विषयमें अतिशय प्रकाशमान
१. M_B उक्तं च- । २. All others except P क्रमो व्ययो । ३. N द्विषन् प्रयतदेश, All others except PN द्विषन्नियत । ४ PM इति ।
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