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२. द्वादश भावनाः एकः क्रोधाद्यनलकलितः कर्म बध्नात्यविद्वान् एकः सर्वावरणविगमे ज्ञानराज्यं भुनक्ति ॥९३
[इति] एकत्वम् । [४] 144 ) अयमात्मा स्वभावेन शरीरादेविलक्षणः ।
चिदानन्दमयः शुद्धो बन्धं प्रत्यैक्यवानपि ॥९४ मानः । एकोऽविद्वान् कर्म बध्नाति । क्रोधाद्यनलकलितः कोपाग्निसहितः । एको जीवः ज्ञानसाम्राज्य भुनक्ति । क्व सति । सर्वावरणविगमे नाशे सति इति सूत्रार्थः ॥९३॥ इति एकत्वभावना समाप्ता। अथान्यत्वभावनामाह।
___144) अयमात्मा स्वभावेन-अयम् आत्मा जीवः स्वभावेन शरीरादेः विलक्षणः अस्ति । पुनः कथंभूतः । चिदानन्दमयः, विश्वरूपः, शुद्धः कर्ममलरहितः । बन्धं प्रत्येकवान् व्यवहारनयात् कर्मबन्धं प्रत्येकवान् एकीभूत इति सूत्रार्थः ॥९४।। अथानाद्यात्मकर्मणोः संबन्धमाह । छेदा जाकर नरकके कीचड़को पीता है-नरकमें नारकी होकर (महान् ) दुःखको भोगता है, एक अज्ञानी प्राणी क्रोधरूप अग्निसे सन्तप्त होकर कर्मको बाँधता है, तथा इसके विपरीत एक जीव समस्त आवरणसे (ज्ञानावरणादि आठों कर्मोंसे ) रहित होकर ज्ञानरूप राज्यका उपभोग करता है-मुक्त होकर अनन्त ज्ञानादिसे संयुक्त हो जाता है। तात्पर्य यह कि यह जीव जैसा आचरण करता है तदनुसार वह अकेला ही या तो कर्मबन्धनमें बँधकर नरकादि गतियोंमें परिभ्रमण करता या फिर उक्त कर्मबन्धनसे रहित होकर निराकुल सुखको भोगता है ॥९३॥ एकत्व भावना समाप्त हुई।
४. अन्यत्वभावना-यह आत्मा स्वभावसे शरीरादिसे भिन्न है, क्योंकि वह चेतन, आनन्दस्वरूप, शुद्ध और बन्धके प्रति एक होकर भी वस्तुतः एक नहीं है । विशेषार्थ-यह आत्मा शरीरादिसे भिन्न है। क्योंकि, दोनों का स्वभाव भिन्न-भिन्न है-आत्मा यदि चेतनस्वरूप होकर ज्ञानानन्दमय है तो शरीर ज्ञान, दर्शन व सुखसे रहित होकर जड़ है तथा आत्मा जहाँ शुद्ध है वहाँ वह शरीर अत्यन्त अशुद्ध है। यद्यपि वह अनादिकालसे कर्म-पुद्गलोंके साथ एक क्षेत्रावगाहरूप ( सम्बद्ध) होनेके कारण शरीरसे भिन्न नहीं दिखता है, परन्तु वस्तुतः वह मिले हुए दूध और पानीके समान उस शरीरसे भिन्न ही है। इस प्रकार जब वह इस शरीरसे भी भिन्न है तब प्रत्यक्षमें भिन्न दिखनेवाले पुत्र, स्त्री, धन-सम्पत्ति एवं भवन आदिसे तो अभिन्न हो ही कैसे सकता है ? कहा भी है-“यस्यास्ति नैक्यं वपुषापि साधु तस्यास्ति किं पुत्र-कलत्र-मित्रैः । पृथक्कृते चर्मणि रोमकूपाः कुतो हि तिष्ठन्ति शरीरमध्ये ॥” अर्थात् जब आत्मा की एकता शरीरके साथ भी नहीं है-उससे भी वह भिन्न है-तब क्या पत्र, स्त्री और मित्र आदिके साथ उसकी एकता हो सकती है ? नहीं हो सकती। ठीक है-शरीरके ऊपरके चमड़ेको अलग कर देनेपर भला रोमोंके छिद्र शरीरमें कहाँसे रह सकते हैं.? नहीं रह सकते ॥ द्वात्रिंशतिका २७. अभिप्राय यह कि जिस प्रकार रोमछिद्रोंका सम्बन्ध चमड़ेके साथ
१.LS F Vcx बध्नाति विद्वान् । २. All others except P M N X प्रत्येकवानपि ।
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