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२. द्वादश भावनाः 191 ) यया कर्माणि शीयन्ते बीजभूतानि जन्मनः ।
प्रणीता यमिभिः सेयं निर्जरा जीर्णबन्धनैः ॥१४० 192 ) सकामाकामभेदेन विकल्पद्वयमश्नुते ।
निर्जरा कर्मजानेकनिगडच्छेदकारणम् ॥१४१ 193 ) पाकः स्वयमुपायाच स्यात्फलानां तरोर्यथा ।
तथात्र कर्मणां ज्ञेयः स्वयं सोपायलक्षणः ॥१४२
___191 ) यया कर्माणि-यमिभिः साधुभिः सेयं निर्जरा प्रणीता। कथंभूतैर्यमिभिः । जीणंबन्धनैः । सा का। यया निर्जरया जन्मनो बीजभूतानि कर्माणि शीर्यन्ते नाश्यन्ते इति सूत्रार्थः ॥१४०॥ अथ निर्जराद्वैविध्यमाह ।
192 ) सकामाकामभेदेन-शरीरिणां सा निर्जरा द्विधा* स्यात् । केन । सकामाकामभेदेन । एका सकामा संसारे परिभ्रमतः गुरूपदेशादिना। एकाकामा धर्म विना संसारे भ्रमतः । यमिना वतिनां पूर्वा निर्जरा सकामा। ततः तस्मात् सर्वदेहिनामन्या अकामा ॥१४१॥ कर्मणां विपाकमाह। ___193 ) पाकः स्वयमुपायाच्च-उपायसहितः। इति सूत्रार्थः ।।१४२।। अथ जीवशुद्धिमाह ।
९. निर्जराभावना-जिसके द्वारा संसारके बीजभूत कर्म नष्ट किये जाते हैं उसे कर्मबन्धसे रहित हुए मुनियोंने निर्जरा कहा है ॥१४॥
वह निर्जरा सकाम और अकामके भेदसे दो भेदोंमें विभक्त है। उनमें कर्मजा निर्जरा अनेक बन्धनों के नाशका कारण है ॥ विशेषार्थ-पूर्वबद्ध कर्मोंके क्रमशः आत्मासे पृथक् होनेका नाम निर्जरा है । वह दो प्रकार की है-सकामनिर्जरा और अकामनिर्जरा। इनमें जो कर्म अभी उदयको प्राप्त नहीं हैं उनको तपके प्रभावसे उदयावलीमें प्रविष्ट कराके इच्छापूर्वक उनके फलको भोगना, यह सकामनिर्जरा कही जाती है। यह तपस्वियोंके हुआ करती है। स्थितिके पूर्ण होनेपर कर्म जो अपना फल देकर निर्जीर्ण होते हैं, इसका नाम अकामनिर्जरा है। यह सब ही प्राणियोंके हुआ करती है। इसमें चूँकि अनिच्छापूर्वक कर्मका फल भोगा जाता है इसीलिए इसे अकामनिर्जरा कहा गया है। उनमें सकाम निर्जराको अविपाकनिर्जरा व कर्मजानिर्जरा तथा अकामनिर्जराको सविपाकनिर्जरा व अकर्मजा निर्जरा भी कहा जाता है ॥१४१॥
जिस प्रकार यहाँ वृक्षके फलोंका परिपाक स्वयं भी होता है और उपायसे-कच्चे तोड़कर उन्हें पालमें देनेसे भी होता है उसी प्रकार कर्मोंका परिपाक भी स्वयं और उपायस्वरूप-तपकी शक्तिसे होनेवाला-भी समझना चाहिए ॥१४२।।
१. M N यतिभिः सेयं । २. All others except P भेदेन द्विधा सा स्याच्छरीरिणाम । निर्जरा यमिनां पूर्वा ततो ऽन्या सर्वदेहिनाम् ॥
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