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ज्ञानार्णवः
[२.१११162 ) यदीदं शोध्यते दैवाच्छरीरं सागराम्बुभिः ।
___दूषयत्यपि तान्येवं शोध्यमानमपि क्षणे ॥१११ 163 ) कलेवरमिदं न स्याद्यदि चर्मावगुण्ठितम् ।
मक्षिकाकृमिकाकेभ्यः स्यात्त्रातुं कस्तदा प्रभुः ॥११२ 164 ) सर्वदैव रुजाक्रान्तं सर्वदैवाशुचेहम् ।
सर्वदैव पतत्तोयं देहिनां देहपञ्जरम् ॥११३ 165 ) तैरेव फलमेतस्य गृहीतं पुण्यकर्मभिः।।
विरज्य जन्मनः स्वार्थे यैः शरीरं कदर्थितम् ॥११४ 162 ) यदीदं शोध्यते-यदीदं शरीरं दैवात् सागराम्बुभिः समुद्रजलैः शोध्यते शुद्धं क्रियते अपि तदा क्षणे प्रस्तावे शोध्यमानम् अपि तान्येव समुद्रजलानि दूषयति कलुषीकरोति इति सूत्रार्थः ॥११॥ शरीरस्य कुत्सितत्वमाह।
___163) कलेवरमिदं-इदं शरीरं चर्मावगुण्ठितं यदि न स्यात् चविनद्धं यदि न स्यात् तदा मक्षिकाकृमिकाकेभ्यः स्यात् त्रातुकः प्रभुः समर्थः । अपि तु न को ऽपीति भावः ॥११२॥ एतदस्यैव स्वरूपमाह।
164 ) सर्वदैव रुजाक्रान्तं-देहिनां प्राणिनां देहपञ्जरं सर्वदैव सर्वस्मिन् काले रुजाक्रान्तं रोगैाप्तम् । पुनः कथंभूतम् । सर्वदैव सर्वकाले अशुचेर्मलस्य गृहम् । सर्वदा सर्वस्मिन् समये *पतनप्रायं पातुकमिति श्लोकार्थः ॥११३॥ अथैतच्छरीरात् सारं ग्रहीतव्यम् । एतदेवाह । ___165 ) तैरेव फलमेतस्य-तैरेव एतस्य जन्मनः फलं गृहीतम् । कैः । पुण्यकर्मभिः पुण्यो
यदि इस शरीरको दैववश समुद्रके जलसे भी शुद्ध किया जाय तो वह शुद्ध करते समय ही क्षणभरमें उस जलको भी मलिन कर देनेवाला है। अभिप्राय यह है कि इस शरीरको स्नानादिके द्वारा शुद्ध करनेका कितना भी प्रयत्न क्यों न किया जाय, किन्तु वह उनसे शुद्ध होनेवाला नहीं है-इसके विपरीत वह अपने संपर्कसे उन जल, चन्दनादिके लेपन एवं सुगन्धित पुष्पादिको ही मलिन कर देनेवाला है ॥१११॥
यह शरीर यदि चमड़ेसे आच्छादित न होता तो मक्खी, लट और कौओंसे भला उसकी रक्षा कौन कर सकता था ? अभिप्राय यह है कि वह शरीर भीतर रुधिर, मांस, चर्बी एवं मल-मूत्रादि घृणित वस्तुओंसे भरा हुआ है। परन्तु ऊपर चमड़ेसे आच्छादित होनेके कारण ये घृणित वस्तुएँ दृष्टिगोचर नहीं होती। यदि वे सब बाह्यमें दृष्टिगोचर होती तो फिर उसकी मक्खियों आदिसे रक्षा करना भी सम्भव नहीं था ॥११२।।
सदा ही रोगोंसे घिरा रहनेवाला उस शरीरका ढाँचा सदा ही अपवित्र वस्तुओंसे परिपूर्ण होता हुआ निरन्तर विनाशके सम्मुख रहता है ॥११३॥
जिन पुण्यशाली प्राणियोंने संसारसे विरक्त होकर अपने प्रयोजनको सिद्ध करनेके
१. S तान्येवं ।
२. All others except P सर्वदा पतनप्रायं ।
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