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२. द्वादश भावनाः 147 ) अणुप्रचयनिष्पन्नं शरीरमिदमङ्गिनाम् ।
उपयोगात्मको ऽत्यक्षः शरीरी ज्ञानविग्रहः ॥९७ 148 ) अन्यत्वं किं न पश्यन्ति जडा जन्मग्रहार्दिताः ।
यज्जन्ममृत्युसंपाते सर्वतो ऽपि पँतीयते ॥९८ 149 ) मृतॆविचेतनैश्चित्रः स्वतन्त्रैः परमाणुभिः।।
यद्वपुर्विहितं तेन का संबन्धस्तदात्मनः ॥९९ मोहं प्राप्यते। कथंभूतं शरीरम् । अत्यन्तनिश्चलम् । कथंभूतेन जीवेन । चेतनेन। कथंभूतं शरीरम् । अस्तचेतनं नष्टचेतनमिति भावः॥९६।। अथ जीवशरीरयोः स्वरूपमाह।
___147 ) अणुप्रचय-इदङ्गिनां शरीरम् अणुप्रचयनिष्पन्नं परमाणुसमूहजातम् । जीवस्तु उपयोगात्मको ऽतोन्द्रियः शरीरं* ज्ञानविग्रहो ज्ञाननाशः इत्यर्थः ॥९७।। अथान्यत्त्वमाह।
___148 ) अन्यत्वं किं न-जन्मग्रहेणार्दिताः पीडिताः जन्ममृत्युसंपाते समागमने। शेष सुगमम् । इति श्लोकार्थः ॥९८।। अथ पर एवात्मनः संबन्धमाह।
___149 ) मतैर्विचेतनैः-यद्वपुः शरीरं परमाणुभिः विहितं निष्पन्नम् । कथंभूतैः परमाणुभिः । मूर्तः पुद्गलरूपैः विचेतनैः अचेतनैः चित्रैः नानाप्रकारैः स्वतन्त्रैः पृथक्स्वरूपैः । तेन वपुषा आत्मनः कः संबन्धः। अपि तु न को ऽपीति भावः ॥९९।। अथ बन्धोर्जीवस्यान्यत्वमाह । देशसे दूसरे देशको न प्राप्त हो सकनेवाले शरीरको इस प्रकारसे धारण करता है जिस प्रकार कि कोई मनुष्य-रामचन्द्र आदि (बलभद्र)-मोहके वश मृत शरीरको धारण करता है ॥२६॥
यह प्राणियोंका शरीर पुद्गल परमाणुओंके समूहसे उत्पन्न हुआ है। परन्तु उस शरीरको धारण करनेवाला जीव उपयोग (ज्ञान-दर्शन ) स्वरूप, इन्द्रियोंका अविषय-चक्षु आदिके द्वारा न देखा जानेवाला-और ज्ञानरूप शरीरसे सहित है ॥२७॥
जीव और शरीरका जो यह भेद जन्म और मृत्युके समयमें सभीके अनुभवमें आता है उसे संसाररूप पिशाचसे पीड़ित अज्ञानी प्राणी क्यों नहीं जानते हैं ? ॥ विशेषार्थअभिप्राय यह है कि प्राणी जब गर्भाशयमें आकर जन्म ग्रहण करता है तब वह उस शरीरको साथमें नहीं लाता है-वह तो माता के द्वारा उपयुक्त आहार आदिके द्वारा वहींपर उत्पन्न होकर वृद्धिको प्राप्त होता है तथा जब वह मरणको प्राप्त होता है तब भी वह शरीर यहींपर पड़ा रहता है और जीव उसके भीतरसे निकलकर गत्यन्तरको चला जाता है। इस प्रकारसे यद्यपि सब ही प्राणी शरीर और जीवके इस भेदको प्रत्यक्षमें देखते हैं फिर भी जो वे उन दोनोंकी भिन्नतापर विश्वास नहीं करते हैं, यह उनके अज्ञानका परिणाम है ॥२८॥
___ जो शरीर मूर्त और अचेतन अनेक प्रकारके स्वतन्त्र परमाणुओंके द्वारा रचा गया है उसके साथ भला उस चेतन और अमूर्त आत्माका क्या सम्बन्ध है ? कुछ भी नहीं-स्वभावभेदके कारण वे दोनों कभी भी एक नहीं हो सकते हैं ॥२९॥ १. B J शरीरं ज्ञान । २. C om. । ३. S अन्यत्वे किं, F अन्यत् किं किं । ४. All others except P सर्वेणापि प्रतीयते ।
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