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ज्ञानार्णवः
[२.३६ - 85 ) सुरोरगनरैश्वर्यं शक्र कार्मुकसंनिभम् ।
सद्यः प्रध्वंसमायाति दृश्यमानमपि स्वयम् ॥३६ 86 ) यान्त्येव न निवर्तन्ते सरितां यद्वदूर्मयः ।
तथा शरीरिणां पूर्वा' गता नायान्ति भूतयः ॥३७ 87 ) क्वचित् सरित्तरङ्गाली गतापि विनिवर्तते ।
न रूपवललावण्यं सौन्दर्य तु गतं नृणाम् ॥३८ 88 ) गलत्येवायुरत्यर्थ हस्तन्यस्ताम्बुवत्क्षणे ।
नलिनीदलसंक्रान्तं पालेयमिव यौवनम् ॥३९ 85 ) सुरोरग-दृश्यमानमपि सुरोरगनरैश्वयं सद्यः शीघ्रमस्तं समायाति । कथंभूतं तदैश्वर्यम् । शक्कार्मुकसंनिभम् । इन्द्रधनुः सदृशमिति भावार्थः ॥३६॥ अथ विभूतीनामनित्यत्वं दर्शयति।
86 ) यान्त्येव न-यद्वत् सरिताम् ऊर्मयः कल्लोला यान्त्येव गच्छन्त्येव न निवर्तन्ते न पश्चाद्गलन्ति । तथा शरीरिणां पूर्वा विभूतयः गता नायान्ति । पूर्वोपाजितपुण्यहीनत्वात् नागच्छन्तीति भावः ॥३७॥ एतदेवाह ।
87 ) क्वचित् सरित्तरङ्गाली-क्वचित् सरित्तरङ्गाली गतापि विनिवर्तते नदोकल्लोलावली कथंचित् पश्चाद्गलति । नृणां शरीरिणां यद्गतं* शरीरगतं रूपबल लावण्यसौन्दर्य न विनिवर्तते इति भावः ॥३८॥ अथ आयुःप्रमुखाणामनित्यतामाह ।
88) गलत्येवायु:-क्षणम् उपलक्षणात् प्रतिक्षणम् आयुर्गलति । अव्यग्रम्* अश्रान्तम् । इस्तत्यस्ताम्बवत करस्थितजलवत्। इव उत्प्रेक्षते। यौवनं नलिनोदलसंक्रान्तं प्रालेयमिव हिममिवेति भावः ।।३९।। संयोगानां क्षणक्षयित्वमाह ।
देव, नागकुमार और मनुष्यों का ऐश्वर्य इन्द्रधनुषके समान देखते देखते स्वयं ही शीव नष्ट हो जानेवाला है । तात्पर्य यह कि इन्द्र, धरणेन्द्र और चक्रवर्तीका भी वैभव जब देखते देखते क्षण भरमें नष्ट हो जाता है तब अन्य साधारण जनकी तुच्छ विभूति का तो कहना ही क्या है-वह तो नष्ट होनेवाली है ही ॥३६॥
जिस प्रकार नदियों की लहरें जाती ही हैं, परन्तु वे लौटकर नहीं आती हैं उसी प्रकार प्राणियों की गयी हुई पूर्वकी विभूतियाँ भी वापिस नहीं आती हैं ॥३०॥
। कहीं पर गयी हुई नदीकी लहरोंका समूह कदाचित् भले ही वापिस आ जावे; परन्तु मनुष्योंका गया हुआ रूप, बल, लावण्य और सुन्दरता फिरसे वापिस नहीं आती है ॥३८॥
जिस प्रकार हाथ की अंजुलीमें रखा हुआ पानी क्षणभरमें नष्ट हो जाता है उसी प्रकार प्राणियों की आयु भी क्षण-क्षणमें अतिशय क्षीण होती जाती है, तथा जिस प्रकार कमलिनीके पत्र पर पड़ी हुई मोती जैसी सुन्दर ओसकी बूंद शीघ्र ही बिखर जाती है उसी प्रकार प्राणियोंका यौवन भी शीघ्र बिखर जानेवाला है ॥३९।। १. M शरीरिणां सर्वा । २. BJY सौन्दर्य यद् गतं । ३. AII others except P वायुरव्यग्रं ।
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