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२. द्वादश भावनाः 102 ) अस्मिन् संसारकान्तारे यमभोगीन्द्रसेविते ।
पुराणपुरुषाः पूर्वमनन्ताः प्रलयं गताः ॥५३ 103 ) प्रतीकारशतेनापि त्रिदशैर्न निवार्यते ।
यत्रायमन्तकः पापी नृकीटैस्तत्र का कथा ॥५४ 104 ) गर्भादारभ्य नीयन्ते प्रतिक्षणमखण्डितैः ।
प्रयाणैः प्राणिनो मृढ कर्मणा यममन्दिरम् ॥५५
नाशात् । कथंभूतमात्मानम् । यमदंष्ट्रान्तरस्थितं मृत्युमुखान्तरगतमित्यर्थः ।।५२।। अथ त्रैकाल्ये ऽपि मृत्योर्वशित्वं पुराणपुरुषाणामाह ।
___102 ) अस्मिन् संसार-अस्मिन् संसारकान्तारे पुराणपुरुषाः पूर्वम् अनन्ताः प्रलयं गता नाशं प्राप्ताः । कथंभूते संसारकान्तारे। यमभोगीन्द्रसेविते इति सूत्रार्थः ॥५३॥ अथान्तकस्यानिवार्यत्वमाह ।
____103 ) प्रतीकारशतेनापि यत्र लोके अयम् अन्तकः पापी त्रिदशैर्देवैः प्रतिकार-[ शतेन ] उपायशतेनापि न निवार्यते। तत्र निवारणे नृकोटैः नरपतङ्गैः का कथा । न कापि इत्यर्थः ।।५४।। अथ कर्मवशात् स्ववस्थासु प्राणिनः म्रियन्ते तदेवाह ।
104 ) गर्भादारभ्य-हे मूढ मूर्ख, प्राणिनः कर्मणा स्वकृतकर्मणा गर्भादारभ्य प्रतिक्षणं यममन्दिरं नीयन्ते अखण्डितैः प्रयाणेरित्यर्थः ॥५५।।
कर्मके क्षीण हो जानेपर मरणको प्राप्त हुए-कुटुम्बो जनका तो शोक करते हैं, किन्तु स्वयं अपने आपको यमकी दाढ़ोंके बीच में स्थित-मरणोन्मुख-नहीं देखते हैं ॥५२॥
यमरूप सर्पराजसे सेवित इस संसाररूप वनके भीतर पहिले अनन्त पुराण पुरुषपुराणों में वर्णित तीर्थकर एवं चक्रवर्ती आदि-मृत्युको प्राप्त हो चुके हैं, अर्थात् उनकी भी रक्षा नहीं हो सकी है ॥५३॥
इस पापी यमराजको जहाँ सैकड़ों प्रकारसे प्रतीकारका प्रयत्न करके देव भी नहीं रोक सके हैं वहाँ क्षुद्र मनुष्यरूप कीड़ोंकी तो बात ही क्या है ? वे तो उसका निवारण किसी प्रकारसे भी नहीं कर सकते हैं ।।४।।
हे मूर्ख ! कर्मके द्वारा ये प्राणी गर्भसे लेकर प्रति समयमें स्थिर प्रयाणों ( पड़ावबीच में ठहरनेके स्थान ) के द्वारा यमालयको ले जाये जाते हैं। अभिप्राय यह है कि अपने अपने कर्म के अनुसार कोई प्राणी गर्भावस्था में ही, कोई जन्म होनेपर और कोई शैशव आदि (कुमार, युवा व वृद्धत्व ) अवस्थामें नियमसे मरणको प्राप्त होते हैं ।।५।।
१. NS TV CR यस्मिन् ।
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