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१. पीठिका
33 ) साक्षाद्वस्तुविचारेषु निकषग्रावसंनिभाः ।
विभजन्ति गुणान् दोषान् धन्याः स्वस्थेन चेतसा ||३३ 34 ) दूषयन्ति दुराचारा निर्दोषामपि भारतीम् । agar कोकाः सुधारसमयीमिव ||३४२ (35) प्रसादयति शीतांशुः पीडयत्येव भानुमान् । निसर्गजनित मन्ये गुणदोषाः शरीरिणाम् ॥३५
33 ) साक्षाद्वस्तु - अन्याः पुरुषाः स्वस्थेन चेतसा गुणान् दोषान् विभजन्ति विभागीकुर्वन्ति । कथंभूता धन्याः। साक्षाद्रस्तु विचारेषु निकषग्रावसंनिभाः कषपट्टसदृशा इत्यर्थः ||३३|| अथ शुद्धवाग्दूषकाणां दुराचारत्वमाह ।
34 ) दूषयन्ति दुराचारा - केचन दुराचारा दुष्टाचारा निर्दोषामपि भारतीं सरस्वतीं दूति । उत्प्रेक्षते । कोकाः चक्रवाकाः सुधारसमयोम् अमृतमयों विधुबिम्बश्रियं चन्द्रमण्डलकलां दूषयन्ति । अप्रयोजकत्वात् दोषं ददातीति तात्पर्यार्थः ||३४|| अथ गुणदोषाणां स्वभावजन्यत्वमाह ।
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35) प्रसादयति शीतांशुः - अहम् एवं मन्ये । शरीरिणां गुणदोषा निसर्गजनिता स्वभावेपन्ना भवन्ति । तत्र दृष्टान्तमाह । यथा शीतांशुः चन्द्रः जगत् प्रसादवत् करोति । अंशुमान् सूर्यो जगत् पीडयति, तापवत्त्वेन तापयतीत्यर्थः ||३५|| अथात्मशुद्धिमाह ।
साक्षात् वस्तुस्वरूपके विचार में शाणोपल ( सुवर्णपरीक्षणका पाषाण - कसौटी ) की समानताको धारण करनेवाले कुछ ऐसे प्रशंसनीय जन भी हैं जो शान्त मनसे गुण और दोषोंका विभाग किया करते हैं । अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार शाणोपलपर सुवर्णके घसनेसे वह उसके खरे और खोटेपनको बिना किसी प्रकार के पक्षपातके प्रगट कर देता है उसी प्रकार सज्जन पुरुष भी राग और द्वेषबुद्धिको छोड़कर यथार्थ में गुण और दोषोंको प्रगट किया करते हैं ||३३||
जिस प्रकार चक्रवाक पक्षी अमृतस्वरूप चन्द्रबिम्बकी लक्ष्मीको दूषित करते हैंचन्द्रोदय के होनेपर चकवीसे वियुक्त हो जानेके कारण चन्द्रबिम्बको दोष देते हैं—उसी प्रकार दुष्ट जन निर्दोष भी वाणीको सदोष बतलाया करते हैं ||३४||
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चन्द्रमा प्राणियों को आह्लादित ( प्रमुदित ) किया करता है और सूर्य उन्हें सन्तप्त ही किया करता है । इससे मैं ऐसा समझता हूँ कि प्राणियोंके गुण और दोष स्वभावसे उत्पन्न हुआ करते हैं । विशेषार्थ - जिस प्रकार चन्द्रमा स्वभावसे अपनी चाँदनीके द्वारा जनों को आनन्दित किया करता है उसी प्रकार सूर्य स्वभावसे अपनी तीक्ष्ण किरणोंके द्वारा उन्हें सन्ताप दिया करता है । इससे पता चलता है कि सज्जनमें गुणग्रहणकी भावना और
३. All others,
१. T विधुमिव । २. STV C X R Verses 34-35 interchanged except P, पीडयत्यंशुमान् जगत् । ४ PM N जनितान् । ५. X Y गुणा दोषाः ।
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