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________________ ७० ज्ञानार्णवः प्रकरण श्लोकांक ५-१४ १५-१९ २०-२२ २३-३५ विषय चार भावनाएँ-मैत्री, करुणा, मुदिता और उपेक्षा भावनाओंका फल ध्यानके लिए स्थानका महत्त्व निषिद्ध स्थान पृष्टांक ४३८-४४० ४४०-४४१ ४४२ ४४२-४४५ २६. १-१४१२१ प्राणायाम ४४७-४८६ १०-१२ १३-२२ २३ ध्यानके लिए योग्य स्थान ध्यानके लिए उचित आसन ध्याताओंकी श्रेष्ठता और योग्यता ध्यानके लिए योग्य दिशा ध्याताके लक्षण आसनजय प्राणायामका स्वरूप, सामर्थ्य और फल ४४७-४४९ ४४९-४५० ४५०-४५२ ४५३ ४५३-४५४ ४५४-४५७ ४५७-४८६ २४-२९ ३०-४० ४१-१४११ २७. प्रत्याहार प्रत्याहारका स्वरूप प्राणायाम प्रत्याहारसे कनिष्ठ प्रत्याहारका स्वरूप ४८८-४९२ ४८८-४८९ ४८९-४९० ४९१-४९२ ६-११ १२-१४ २८. सवीर्य ध्यान ४९३-५०५ १-३८ १-१६ १७-१८ १९-३३ ३४-३८ ध्यानाभिमुख मुनिके विचार ध्येयका स्वरूप आत्माका स्वरूप ध्यानका स्वरूप और फल ४९३-४९७ ४९८ ४९९-५०३ ५०३-५०५ १-१०४ ५०६-५३५ ५-८ ९-२३ २४-३६ ३७-४७ ४८-५४ ५५-९३ ९४-१०४ शुद्धोपयोग विचार परमात्माके लिए आत्मज्ञानकी आवश्यकता आत्माके तीन प्रकार आत्मभिन्न पदार्थों में आत्मबुद्धि परमात्माका स्वरूप बन्धमोक्षका कारण आत्मज्ञानका फल अज्ञानी और आत्मज्ञानियोंमें तुलना परमात्मज्ञानका फल ५०६-५०७ ५०७-५०८ ५०८-५१२ ५१२-५१६ ५१६-५१९ ५१९-५२१ ५२१-५३२ ५३२-५३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001696
Book TitleGyanarnav
Original Sutra AuthorShubhachandra Acharya
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1977
Total Pages828
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Dhyan, & Yoga
File Size18 MB
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