Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
आत्रेय
प्राचीन चरित्रकोश
आदिराज
४. जनमेजय सत्र का एक सदस्य (म. आ. ४८.८)। आदित्यों से इन्द्र अलग है (श. ब्रा. ११.६.३.५)।
५. हंसरूप से संचार करनेवाला ऋषि । इसने साध्यों | आदित्य का उल्लेख वसु, रुद्र, मरुत् , अंगिरस्, ऋभु को नीति बताई (म. उ. ३६)।
तथा विश्वेदेव इन देवताओं के साथ कई स्थानों पर आत्रेयायणि-अंगिराकुल का एक गोत्रकार। आया है फिर भी वह सब देवताओं का सामान्य नाम
आत्रेयी-अत्रि ऋषि की कन्या। यह अग्निपत्र अंगिरा है। आदित्यों का वर्णन सब देवताओं के सामान्य वर्णनों को व्याही गयी थी। दत्त, दुर्वास तथा सोम इसके बंध हैं। | से मिलताजुलता होते हुए भी आदित्यों में प्रमुग्व मित्राइसके पुत्रों को आंगिरस कहते हैं। आत्रेयी को उसका बरुणा से नही मिलता। सर्वाधार, सर्वपालक. मन के पति, नित्य निष्कारण कठोर शब्द कहता था। एक दिन, 1 विचार जाननेवाले, पापी जनों को सजा देनेवाले तथा उसने ससुरसे इसकी शिकायत (तकरार ) की। उसने | रोग दूर कर दीर्घायु देनेवाले ऐसा इनका वर्णन है। बताया कि, तेरा पति अग्निपुत्र है, अतः बहुत तेजस्वी ब्रह्मदेव को उद्देशित कर, अदिति ने चांवल पकाया, है। उसे तू जलरूप से स्नान करा कर शांत कर। इस पर
ताकि, उसके कोख से साध्य देव उत्पन्न हो। आहुति दे आत्रेयी परुष्णी नदी बन गयी तथा अपने जल से पति
कर बचा हुआ चांवल उसने खाया जिससे धाता एवं को शांत करने लगी। इसका गंगा से संगम हुआ (ब्रह्म.
अर्यमा दो जुडवें पुत्र हुए। दूसरी बार मित्र तथा वरुण १४४)।
तीसरी बार अंश एवं भग तथा चौथे बार इन्द्र एवं विवस्वान २. अपाला तथा विश्ववारा देखिये।
हुए । अदिति के बारह पुत्र ही द्वादशादित्य या साध्य आत्रेयीपुत्र--गौतमीपुय का शिष्य (बृ. उ. ६.५. नामक देव हैं (ते. ब्रा. १.१.९.१)। आदित्य से सामवेद २)।
हुआ (ऐ. ब्रा. २५.७; सां. बा. ६.१०; श. ब्राः ११.५. आथर्वण-अथर्वन् का पुत्र, शिष्य तथा अनुयायी | |८; छां. उ. ४.१७.२; जै. उ. ब्रा. ३.१५.७; ष.ब्रा. ४. अर्थ का शब्द ।
१; गो. ब्रा. १.६)। पुराणों में आदित्य, कश्यप तथा कबंध, दध्यच् , बृहद्दिव, भिषज, विचारिन देखिये। आदात के पुत्र है (कश्यप देखिये) आदर्श-धर्मसावर्णि मनु का पुत्र ।
१. अंशुमान् (आषाढ माह, किरण १५००); २. आदित्य-वैवस्वत मन्वंतर में देवताओं के समूह का
अर्यमन् (वैशाख, १३००), ३. इंद्र (आश्विन, नाम । ऋग्वेद में इसके लिये छः सूक्त हैं । एक स्थान में
१२००), ४. त्वष्ट्र (फालान, ११००), ५. धातृ केवल अदित्यसंघ में छः देवता हैं (ऋ.२.२७.१)। वे इस
| (कार्तिक, ११००), ६. पर्जन्य (श्रावण, १४००), प्रकार हैं-१. मित्र, २. अर्यमन् , ३. भग, ४. वरुण, ५.
| ७. पूषन् (पौष), ८. भग (माघ, ११००), ९. मित्र दक्ष, तथा ६. अंश । अदिति को आठ पुत्र थे (अ. वे.
(मार्गशीष, ११००), १०. वरुण (भाद्रपद, १३००), ८.९.२१)। १. अंश, २. भग, ३. धातृ, ४ इन्द्र, ५
११. विवस्वत् (जेष्ठ, १४००), १२. विष्णु (चैत्र,
१२००)। इनके काय भी बताये हैं (भवि. ब्राहा. ६५ विवस्वत , ६. मित्र, ७. वरुण तथा ८. अर्थमन् (ते. बा.
७४; ७८; विष्णु. १.१५.३२)। अंशुमान् के लिये १.१.९१)। परंतु अदिति का आटवां पुत्र माताण्ड दिया गया है (ऋ. १०.७२. ८-९; श. ब्रा. ६.१.२.८)।
अंश या अंशु एसा पाठ है । विष्णु के लिये उस्कम पाठ
है। परंतु स्कंदपुराण में बिलकुल भिन्न सूची दी गयी आदित्य बारह है जो बारह माहों के निदर्शक हैं (श. ब्रा. | ११.६.३.८)। वेदोत्तर वाङ्मय में बारह माहों के बारह
है । १. लोलार्क, २. उत्तरार्क, ३. सांबादित्य, ४.
द्रुपदादित्य, ५. मयूखादित्य, ६. अरुणादित्य, ७. वृद्धाआदित्य या सूर्य प्रसिद्ध हैं (कश्यप देखिये)। उन में
दित्य, ८. केशवादित्य, ९. विमलादित्य, १०. गंगादित्य, विष्णु सर्वश्रेष्ठ माना गया है । ऋग्वेद में सूर्य को आदित्य
११. यमादित्य, १२. सकोलकादित्य (रकंद. २.४.४६.)। कहा गया है। इसलिये सूर्य सातवां और मार्ताण्ड आठवां आदित्य होगा। गाय आदित्य की बहन हैं (ऋ.८.१०१. आदित्यकेतु-धृतराष्ट्र पुत्र । इसे भीम ने मारा १५)।
(म. भी. ८४.२७)। इन्द्र यह अदिति का पुत्र अर्थात् आदित्यों में से एक आदिराज--(सो. कुरु.) अभिवत् का पुत्र है (ऋ. ७.८५.४; मै. सं. २.१.१२)। परंतु बारह । (म. आ. ८९.४५)।