Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
आदणार
आटणार --पर का पैतृक नाम । आडि -- अंधकासुर का पुत्र तथा बक का भाई | अपने पिता का वध करनेवाले से लेने के देग, ब्रह्मदेव को प्रसन्न कर, इसने अमरत्व माँगा। रूपांतरित अवस्था में ही मृत्यु होगी अन्यथा नहीं, ऐसा वर इसने प्राप्त किया।
वरप्राप्ति के पश्चात् तत्काल, यह कैलास पहुँचा | कहाँ के वीरभद्र या पीक द्वारपाल से स्कायट न हो इस हेतु से, इसने सर्परूप धारण कर, भीतर प्रवेश किया। तरी का रूप धारण कर यह शंकर के सामने गया । शंकर ने उसका कपट जान कर तथा रूपांतरित अवस्था की संधि साथ कर, तत्काल इसका वध किया ( मल्ल्य. १५६९ पद्म. सु. ४९.४५-७२, वीरभद्र देखिये) ।
हरिश्चंद्र का, विश्वामित्र द्वारा दिया गया दुःख देख कर, वसिष्ठ ने विश्वामित्र को, पक्षी योनि में परिणत होने का शाप दिया। इसके उत्तर में विश्वामित्र ने भी वसिष्ठ को यही शाप दिया । पक्षी योनि में भी दोनों युद्ध करते रहे । अन्त में ब्रह्माजी को इनका अगला निठाना पड़ा ये ही दो पक्षी भाडि तथा वक नाम से ख्यात है।
आत्रेय
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कह दिया कि, उसने फल खा लिया है। बहन ने उसे बताया कि, तू गर्भवती होने का ढोंग कर। मुझे जो पुत्र होगा वह मैं तुझे दे दूंगी क्योंकि वह स्वयं गर्भवती थी। पुत्र होने पर आत्मदेव ने उसका नाम धुंधुकारी रखा । गाय को भी यथा समय पुत्र हुआ । कान, गाय की तरह के होने के कारण, उसका नाम गोकर्ण रखा गया । बुंधुकारी दुर्वृत्त होने के कारण यह तंग आ गया। ।
गोकर्ण ने उसे संसार से निवृत्त होने को कहा। इसने ईश्वरभक्ति के द्वारा परमार्थ तथा मोक्ष प्राप्त किया (२.१९६ ) ।
झगडा मिटाते समय ब्रह्माजी ने वसिष्ठ से कथन किया क. पद्यपि विश्वामिप ने हरिचंद्र को पोर देश दिये, तथापि उसके अन्त में स्वर्ग का मार्ग मुक्त कर दिया - (मार्क. ९) ।
आदि-बक युद्ध देवासुरों के बारह युद्ध में छपी है ( मल्प. ४०.४१-५४) । यहाँ आठि तथा बक ये व्यक्ति • के नाम न हो कर समुदाय के नाम दिखते है ।
आत्रेय मांटीना शिष्य (बृ. उ. २,१.२) तथा अंगराज का पुरोहित ( ऐ. बा. ८.२२ ) । संधि तथा उच्चार के लिये इसके मत का गौरव के साथ उल्लेख है ( तै. प्रा. ५.३१६ १७.८ ) । यही तैत्तिरीय संहिता का पदपाठकार रहा होगा । तैत्तिरीयों के आचार्यतर्पण में इसका समावेश इसी कारण हुआ है ( स. गृ. २०.८. २०)। जैमिनिसूत्रों में भी (५,२. १८३ ६.१.२६ ) एक आत्रेय का उल्लेख है । आत्रेयी शिक्षा तथा संहिता ये ग्रंथ भी भय के हैं (CC)। गर्भाधान संस्कार के मंत्र कहने के विषय में इसके मत का निर्देश किया गया है ( स. गृ. १९००६२५) । वैद्यक में भी धन्वंतरि के पूर्व, एक आत्रेय हो गया है । धन्वंतरि ने
शशादपुत्र ककुत्स्थ का स्मरण इंद्र ने आढियक युद्ध अप्रगीत मृतसंजीवनीकर रसायन (काढ़ा) दिये हैं
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में किया था (पा. ८८.२५ ) ।
(अ. २८५१०९.१४६ ) | ये सब एक हैं वा भिन्न, यह कहना कठिन है ।
आडीर -- जनापीड देखिये ।
आत्मन्मंश (ऋ. १.२६.७ ) ।
२. अंगिरा देवों में से एक। अंगिरा तथा सुरूपा का पुत्र ( मत्स्य. १९६ ) ।
आत्मवत् भृगुगोत्र का मंत्रवार आत्मावत भी पाठांतर है।
अतिथिग्व- इन्द्रोत का पैतृक नाम ( दिवोदास देखिये) ।
आत्मदेव - एक ब्राह्मण । यह तुंगभद्रा के किनारे कोहल ग्राम में रहता था। इसकी स्त्री गृहकार्य में निपुण परंतु झगडालू थी । निपुत्रिक होने के कारण, यह विरक्त होकर भ्रमण करने लगा। उस समय एक वापिका तट पर उसकी एक सिद्ध से भेंट हुई। सिद्ध ने पुत्र प्राप्ति के हेतु एक फल दिया, जिसे स्त्री को स्विव्यने को कहा। उसने अपनी स्त्री को फल दिया। स्त्री ने अपनी बहन के कहने पर वह फल गाय को खिला दिया तथा पति से झूठा ही प्रा. च. ८]
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(अर्चनानस्, अवस्यु, उरुचक्रि, एवयामरूत्, कुमार, कृष्ण, गय, गविष्ठिर, गातु, गृत्समद, गोपवन, दक्ष कात्यायनि झुग्न, द्वित, पुरु, पौर, प्रतिक्षत्र, प्रतिप्रभ, प्रतिभानु प्रतिरथ वधु बाहुवृत्ति, बुद्धि, गृक्तवाह, यशत, रातहव्य, वत्रि, वसुश्रुति, विश्वसामन्, शंग, शाट्यायनि, श्यावाश्व, श्रुतिवित्, सत्यश्रवस्, सदावृण, सप्तवधि, सस तथा सुतंभर देखिये) ।
२. एक राजा । इसे एकत, द्वित तथा त्रित पुत्र थे (त्रित देखिये) ।
२. वामदेव का शिष्य ( परीक्षित देखिये) ।