Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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गोशालक सम्बन्धी इतिहास को सर्वथा परिवर्तित करना चाहते हैं। डॉ. वेणीमाधव बरुआ ने इसी प्रकार का प्रयास किया है, जो उचित नहीं है। 'आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन' ग्रन्थ में मुनि श्री नगराजजी डी. लिट् ने इस संबंध में विस्तार से ऊहापोह किया है। जिज्ञासु पाठक उस ग्रन्थ का अवलोकन कर सकते हैं।
यह सत्य है कि गोशालक अपने युग का एक ख्यातिप्राप्त धर्मनायक था । उसका संघ भगवान् महावीर के संघ से बड़ा था। भगवान् महावीर के श्रावकों की संख्या १५९००० थी तो गोशालक के श्रावकों की संख्या ११६१००० थी जो उसके प्रभाव को व्यक्त करती है। यही कारण है कि तथागत बुद्ध ने गोशालक के लिए कहा कि वह मछलियों की तरह लोगों को अपने जाल में फँसाता है। इसके तीन मूल कारण थे । १. निमित्त-संभाषण, २. तप की साधना, ३ . शिथिल आचारसंहिता, जबकि महावीर और बुद्ध' के संघ में निमित्त भाषण वर्ज्य रहा और भगवान् महावीर की तो आचारसंहिता भी कठोर रही।
भगवती के अतिरिक्त आवश्यकनिर्युक्ति, आवश्यकचूर्णि, आवश्यक मलयगिरिवृत्ति' त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित, महावीरचरियं प्रभृति ग्रन्थों में गोशालक के जीवन के अन्य अनेक प्रसंग हैं। पर विस्तारभय से उन प्रसंगों को यहाँ नहीं दे रहे हैं । दिगम्बराचार्य देवसेन ने भावसंग्रह ग्रन्थ में गोशालक का परिचय कुछ अन्य रूप से दिया है। उनके अभिमतानुसार गोशालक भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा के एक श्रमण थे । वे महावीरपरम्परा में आकर गणधर पद प्राप्त करना चाहते थे पर जब उनकी गणधर पद पर नियुक्ति नहीं हुई तो वे श्रावस्ती में पहुँचे और आजीवक सम्प्रदाय के नेता व अपने-आपको तीर्थंकर उद्घोषित करने लगे। वे इस प्रकार उपदेश देने लगे— ज्ञान से मोक्ष नहीं होता, अज्ञान से ही मोक्ष होता है। देव या ईश्वर कोई नहीं है। अतः अपनी इच्छा के अनुसार शून्य का ध्यान करना चाहिए ।" त्रिपिटक साहित्य में भी आजीवक संघ और गोशालक का वर्णन प्राप्त है । तथागत बुद्ध के समय जितने मत और मतप्रवर्तक थे, उन सभी मतों एवं मतप्रवर्तकों में से गोशालक को तथागत बुद्ध सबसे अधिक निकृष्ट मानते थे । तथागत बुद्ध ने सत्यपुरुष और असत्यपुरुष का वर्णन करते हुए कहा— कोई व्यक्ति ऐसा होता है जो बहुत जनों के अलाभ के लिए होता है। बहुत जनों की हानि के लिए होता
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The Ajivika J.D.L. Vol. II. 1920, pp. 17-18
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन, प्रकाशक जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा कलकत्ता, खण्ड १, पृष्ठ ४४
अंगुत्तरनिकाय १- १८-४-५
(क) निशीथसूत्र उ. १३-६६
(ख) दशवैकालिक सूत्र अ. ८, गा. ५
विनयपिटक चुल्लवग्ग ५-६-२
आवश्यकनिर्युक्ति गाथा ४७४ से ४७८ आवश्यकचूर्णि प्रथम भाग, पत्र २८३ से २८७ आवश्यक मलयगिरिवृत्ति, पत्र २७७ से २७९ त्रिपष्टिशलाका चरित्र, पर्व १० सर्ग ४
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१०. महावीरचरियं, आचार्य नेमिचन्द्रसूरि ११. भावसंग्रह, गाथा १७६ से १७९
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