Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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विचार श्रमणों के सामने प्रस्तुत किए। कुछ श्रमणों ने उनकी बात को स्वीकार किया, और कुछ ने स्वीकार नहीं किया। जिन्होंने स्वीकार किया, वे भगवान् महावीर के पास लौट आए। जब जमाली स्वस्थ हुए तब वे भगवान् महावीर के पास पहुंचे और कहने लगे—आपके अनेक शिष्य छद्मस्थ हैं, केवलज्ञानी नहीं। पर मैं तो केवलज्ञानदर्शन से युक्त अर्हत् जिन और केवली के रूप में विचरण कर रहा हूँ। गणधर गौतम ने जमाली का प्रतिवाद किया। उन्होंने पूछा कि यदि आप केवलज्ञानी हैं तो बताएँ कि लोक शाश्वत है या अशाश्वत ? जीव शाश्वत है या अशाश्वत ? जमाली गौतम के प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सके। तब भगवान् महावीर ने कहा-जमाली ! मेरे अनेक शिष्य इन प्रश्नों का समाधान कर सकते हैं, तथापि वे अपने-आपको जिन व केवली नहीं कहते हैं। जमाली के पास इस का कोई उत्तर नहीं था, वर्षों तक असत्य प्ररूपणा करते रहे। अन्त में अनशन किया पर पाप की आलोचना नहीं की। जिससे वे लान्तक देवलोक में किल्विषिक देव के रूप में उत्पन्न हुए। विशेषावश्यकभाष्य में वर्णन हैं कि जमाली की विद्यमानता में ही प्रियदर्शना भी जमाली की विचारधारा में प्रवाहित हो गई थी और महावीर संघ को छोड़कर जमाली के संघ में मिल गई थी। एकदा अपने साध्वीपरिवार के साथ श्रावस्ती में ढंक कुंभकार की शाला में ठहरी। ढंक महावीर का परम भक्त था। उसने प्रियदर्शना को प्रतिबोध देने के लिए उसकी साड़ी में आग लगा दी। साड़ी जलने लगी। प्रियदर्शना के मुँह से ये शब्द निकले "संघाटी जल गई।" ढंक ने कहा—आप मिथ्या संभाषण कर रही हैं। संघाटी जली नहीं जल रही है। प्रियदर्शना प्रबुद्ध हुई। उसे अपनी भूल परिज्ञात हुई। भूल का प्रायश्चित्त कर वह पुनः साध्वीसमूह के साथ महावीर के साध्वी परिवार में सम्मिलित हो
गई।
भगवतीसूत्र शतक १५ में गोशालक का ऐतिहासिक निरूपण हुआ है। गोशालक भगवान् महावीर की छद्मस्थ अवस्था में ही भगवान् महावीर की तप:पूत साधना को निहारकर उनका शिष्य बनने के लिए लालायित था। उसने भगवान् महावीर से शिष्य बनाने की प्रार्थना की और चिरकाल तक भगवान् के साथ रहा भी। इसका सविस्तृत वर्णन प्रस्तुत प्रकरण में आया है। गोशालक मंख कर्म करने वाले मंखली नामक व्यक्ति का पुत्र था। "गोसाले मंखलीपुत्ते" शब्द का प्रयोग भगवती, उपासकदशांग आदि आगमों में अनेक स्थलों पर हुआ है। मंख का अर्थ कहीं पर चित्रकार और कही पर चित्रविक्रेता मिलता है। आचार्य अभयदेव ने अपनी टीका में लिखा है “चित्रफलक हस्ते गतं यस्य स तथा" अर्थात् जो चित्रपट्टक हाथ में रखकर आजीविका करता है। मंख नाम की एक जाति थी। उस जाति के लोग पट्टक हाथ में रखकर अपनी आजीविका चलाते थे। जैसे आज डाकात लोग शनिदेव की मूर्ति या चित्र हाथ में रख कर अपनी जीविका चलाते हैं। ____ धम्मपद अट्ठकथा, मज्झिमनिकाय' अट्ठकथा में मंखली गोशालक के संबंध में प्रकाश डालते हुए उसका नामकरण किस तरह से हुआ, इस पर एक कथा दी है। उनके मतानुसार गोशालक दास था। एक बार वह तैल-पात्र लेकर अपने स्वामी के आगे-आगे चल रहा था। फिसलन की भूमि आई। स्वामी ने उसे कहा
१. विशेषावश्यकभाष्य, गाथा २३२४ से २३३२
Indological Studies, Vol. II, Page 254 ३. Dictionary of Pali Proper Names, Vol. II, Page 400 ४. धम्मपद अट्ठकथा. आचार्य वुद्धघोष १-१४३
मज्झिमनिकाय अट्ठकथा, आच
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