Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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"तात ! मा खलि तात ! मा खलि"-अरे स्खलित मत होना। पर गोशालक स्खलित हो गया और सारा तेल जमीन पर फैल गया। स्वामी के भय से भीत बनकर वह भागने का प्रयास करने लगा। स्वामी ने उसका वस्त्र पकड़ लिया। वह उस वस्त्र को छोड़कर नंगा ही वहाँ से चल दिया । इस प्रकार वह नग्न साधु हो गया और मंखली के नाम से विश्रुत हुआ।
__ प्रस्तुत कथानक एक किंवदन्ती की तरह ही है और यह बहुत ही उत्तरकालिक है, इसलिए ऐतिहासिक दृष्टि से चिन्तनीय है।
आचार्य पाणिनि ने मस्करी शब्द का अर्थ परिव्राजक किया है। आचार्य पतञ्जजि ने पातञ्जल महाभाष्य । में लिखा है—मस्करी वह साधु नहीं है जो अपने हाथ में मस्कर या बांस की लाठी लेकर चलता है। मस्करी वह है जो उपदेश देता है—कर्म मत करो, शान्ति का मार्ग ही श्रेयस्कर है। आचार्य पाणिनि और आचार्य पतञ्जलि के अनुसार गोशालक परिव्राजक था और कर्म मत करो' इस मत की संस्थापना करने वाली संस्था का संस्थापक था। जैनसाहित्य की दृष्टि से वह मंखली का पुत्र था और गोशाला में उसका जन्म हुआ था। इस तथ्य की प्रामाणिकता पाणिनि और आचार्य बुद्धघोष के द्वारा भी होती है। जैन आगम में गोशालक को आजीविक लिखा है तो त्रिपिटक साहित्य में आजीवक लिखा है। आजीविक तथा आजीवक इन दोनों शब्दों का अभिप्राय है आजीविका के लिए तपश्चर्या आदि करने वाला। गोशालक मत की दृष्टि से इस शब्द का क्या अर्थ उस समय व्यवहृत था, उसको जानने के लिए हमारे पास कोई ग्रन्थ नहीं है। जैन और बौद्ध साहित्य की दृष्टि से गोशालक के भिक्षाचरी आदि के नियम कठोर थे।
जैन और बौद्ध दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों के आधार से यह सिद्ध है कि गोशालक नग्न रहता था तथा उसकी भिक्षाचरी कठिन थीं। आजीविक परम्परा के साधु कुछ एक दो घरों के अन्तर से, कुछ एक तीन घरों के अन्तर से यावत् सात घरों के अन्तर से भिक्षा ग्रहण करते थे। भगवतीसूत्र शतक ८ उद्देशक ५ में आजीविक उपासकों के आचार-विचार का वर्णन इस प्रकार प्राप्त है—वे गोशालक को अरिहन्त मानते हैं। माता-पिता की शुश्रूषा करते हैं। गूलर, बड़, बौर, अञ्जीर, पिलंखु इन पांच प्रकारों के फलों का भक्षण नहीं करते। प्याज, लहुसन आदि कन्दमूल का भक्षण नहीं करते । बैलों को नि:लंछण नहीं कराते । उनके नाक, कान का छेदन नहीं कराते । वे त्रस प्राणियों की हिंसा हो ऐसा व्यापार भी नहीं करते।
गोशालक के सम्बन्ध में पाश्चात्य और पौर्वात्य विज्ञों ने शोध प्रारम्भ की है। कुछ विज्ञ शोध के नाम पर नवीन स्थापना करना चाहते हैं पर प्राचीन साक्षियों को भूलकर नूतन कल्पना करना अनुचित है। कितने ही विद्वान्
१. मस्करं मस्करिणौ वेणु परिव्राजकयोः। - पाणिनिव्याकरण ६-१-१५४ २. न वै मस्करोऽस्यास्तीति मस्करी परिव्राजकः। किं तर्हि । मा कृत कर्माणि मा कृत कर्माणि शान्तिवः श्रेयसीत्याहतो
मस्करी परिव्राजकः। - पातञ्जलमहाभाष्य ६-१-१५४ गोशालायां जातः गौशाल। ४-३-३५ सुमगल विलासनी दीघनिकाय अट्ठकथा, पृष्ठ १४३-१४४ महासच्चक सुत्त १-४-६ अभिधानराजेन्द्र कोष, भाग २, पृष्ठ ११६
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