Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रुतस्कन्ध. १ लोकसार अ. ५ उ. २
इति अधिकारसमाप्तौ; ब्रवीमि-कथितं वक्ष्यमाणं वा अभिदधामि । एतत् सर्व भगवदुपदेशादेव मया ज्ञातमित्येवाह-'तदित्यादि' । यन्मया प्रोक्तं वक्ष्यमाणं वा तत् सर्व मया श्रुतं तीर्थङ्करसकाशात् , तथा तत्सर्वमध्यात्मकम्-आत्मनि इत्यध्यात्म तदेवाध्यात्मकं मे ममान्तःकरणस्थितं, किं तत्सर्वमिति जिज्ञासायामाह'बन्धे 'त्यादि, अध्यात्मे एवब्रह्मचर्ये एव व्यवस्थितस्य बन्धप्रमोक्षः बन्धात्= कर्मबन्धात् प्रमोक्षो भवति ।
यद्वा-बन्धप्रमोक्षौ' इतिच्छाया, ततो बन्धः-ज्ञानावरणीयाधष्टविधकर्मसम्बन्धः, प्रमोक्षः तस्मात्पृथग्भवनं च बन्धप्रमोक्षौ, उभावपि अध्यात्मे एव= " इति ब्रवीमि"-इति पद अधिकार की समाप्तिका सूचक है, अर्थात् इस उद्देश में यहां तक अथवा इस सूत्र में जो कहा है और आगे भी जो कुछ कहता हूं वह मैंने भगवान् के उपदेश से ही जाना है। इसी लिये सूत्रकार ने" तच्च श्रुतं मया" यह कहा है। यह कथित अथवा आगे प्रतिपाद्य समस्त विषय जिसे मैंने तीर्थङ्कर प्रभु से सुना है वह मेरी आत्मा में-अन्तःकरणमें स्थित है। उन्हों ने यह कहा है कि-"अध्यात्मे एव" ब्रह्मचर्य में व्यवस्थित साधु की ही बन्धसे मुक्ति होती हैअर्थात् वह जीव प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्ध-इन चार प्रकार के कर्मबन्ध से रहित होता है । सो यही बात मैंने भी यहां पर कही है।
अथवा-"बंधपमुक्खो "की " बंधप्रमोक्षौ" यह भी संस्कृत छाया होती है । ज्ञानावरणीयादिक आठ प्रकारके काका सम्बन्ध तो बंध है और उससे आत्मा का पृथक होना प्रमोक्ष है । ये दोनों
" इति ब्रवीमि " ति ५६ मधि४।२नी समातिनु सूय छ, अर्थात् २ ઉદ્દેશમાં અહીં સુધી અથવા આ સૂત્રમાં જે કહ્યું છે અને આગળ પણ જે કાંઈ ४९ छु ते अधा में सपानना उपदेशथी ना छे. भाट सूत्रारे “ तत् श्रुतं च मया " २४हेस छ. २॥ स थq! सारे उपामा माशे ते સમસ્ત વિષય, જેને મેં તીર્થંકર પ્રભુથી સાંભળ્યું છે તે મારા આત્મામાં– मत:४२मा स्थित छे. तेभरे से यु , " अध्यात्मे एव" ब्रह्मययभा વ્યવસ્થિત સાધુની જ બંધથી મુક્તિ થાય છે, અર્થાત્ એ જીવ પ્રકૃતિબંધ, સ્થિતિબંધ, અનુભાગબંધ, અને પ્રદેશબંધ, આવા ચાર પ્રકારના કર્મબંધથી રહિત બને છે. તે જ વાત મેં પણ અહિં કહી છે.
अथवा “ बंधपमुक्खो"नी “बन्धप्रमोक्षौ " संस्कृत छाया मने छ. તથા જ્ઞાનાવરણીયાદિક આઠ પ્રકારના કર્મોને સંબંધ બંધ છે તેનાથી આત્માનું
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩