Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 650
________________ ५८८ आचारागसूत्रे ___ तदेवाह--' उवसंकमंत०' इत्यादि । मूलम् उवसंकमंतमपडिन्नं, गामंतियं पि अप्पत्तं । पडिनिक्खमित्तु लुसिंसु, एयाओ परं पलेहि-त्ति ॥९॥ छाया--उपसंक्रामन्तमप्रतिज्ञं ग्रामान्तिकमपि अप्राप्तम् ।। ___ प्रतिनिष्क्रम्य अलूषिषुः एतस्मात् परं पलायस्वेति ॥ ८॥ टीका--प्रतिनिष्क्रम्य तेऽनार्यलोकास्तस्माद् ग्रामात् प्रतिनिर्गत्य, अप्रतिज्ञंनियतावस्थानादिप्रतिज्ञारहितम्-उपसंक्रामन्तम्-वासार्थ वजन्तं, ग्रामान्तिके वसतिसमीपे प्राप्तमप्राप्तं वा भगवन्तम् अलूषिषुः-दण्डमुष्ट्यादिभिस्ताडयामासुः, ऊचुश्च-'एतस्मात्-इतः स्थानात् परम् अन्यस्थानं, पलायस्व' इति ॥९॥ किञ्च-' हयपुव्वो' इत्यादि। सूत्रकार इन्हीं परीषह और उपसर्गों को बतलानेके लिये सूत्र कहते हैं-'उपसंकमंत०' इत्यादि। उस ग्रामके वे अनार्यजन अपने २ घरसे निकल कर नियमित स्थान पर ठहरनेके अथवा एक नियत स्थान पर रहने आदिके बन्धसे रहित उन भगवानसे जो उस समय ठहरनेके लिये उस ग्रामकी ओर बढ रहे थे, तथा वसतिमें आने भी नहीं पाये थे, उस पहले ही पासमें आकर कहने लगे कि तुम शीघ्र ही यहांसे किसी दूसरी जगह भाग जाओ। ऐसा कहते हुए उन लोगोंने भगवानको दण्ड, मुष्टि आदिसे खूब प्रहार किया ॥९॥ __ और भी 'हयपुव्यो' इत्यादि। સૂત્રકાર એ પરિષહ અને ઉપસર્ગોને સમજાવવા માટે સૂત્ર કહે છે – ‘उवसंकमंत०' त्यादि. એ ગામના એ અનાર્યજન પોત-પોતાના ઘરેથી નીકળી નિયમિત સ્થાન પર રોકાવાના અથવા એક નિયત સ્થાન પર રહેવા આદિના બંધનથી રહીત એવા ભગવાનથી કે જે તે સમય રહેવા માટે તે ગામની તરફ આવી રહ્યા હતા, અને વસતીમાં આવી પણ નહિ શકયા તે પહેલાંજ સામને આવી કહેવા લાગ્યા કે તમે તાત્કાલિક અહીંથી બીજી જગ્યાએ ભાગી જાઓ. એમ કહી એ લોકેએ ભગવાનને લાકડી, હાથની મુઠી વગેરેથી ખુબ પ્રહાર કરેલા. (૯) - हयपुव्वो' त्यादि श्री मायारागसूत्र : 3

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