Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 678
________________ आचारानसूत्रे बाकाययोगं विधाय, अभिनिर्वृतः कषायानलप्रशमेन शीतीभूतः, अत एव यावत्कथंयावजीवं समिता समितिपश्चकसमन्वितः, तथा गुप्तित्रयसमन्वितश्वासीत् ॥१६॥ उपसंहरन्नाह-एस विही ' इत्यादि। मलम्-एस विही अणुक्कतो, माहणेण मईमया । बहसो अपडिन्नेणं, भगवया एवं रयिंति-त्तिबमि ॥१७॥ छाया-एष विधिरनुक्रान्तः, माहनेन मतिमता। बहुशोऽप्रतिज्ञेन, भगवता एवं रीयन्ते-इति ब्रवीमि ॥१६॥ टीका--अस्य व्याख्या प्रथमोद्देशकेऽभिहिता तत एवाधिगन्तव्या। ' इति ब्रवीमि' अस्य व्याख्याऽपि पूर्व गता ॥ १७ ॥ ॥ नवमाध्ययनस्य चतुर्थ उद्देशः समाप्तः ॥९-४।। क्षयसे आत्माकी शुद्धि कर चारित्र अंगीकार कर मन, वचन और कायकी प्रवृत्तिको सुप्रणिधानयुक्त करते हुए कषायरूपी अग्निके प्रशमसे अत्यंत शीतल हुए और जीवनपर्यन्त पांच समिति एवं तीन गुप्तिसे युक्त शोभित हुए ॥१६॥ अब सूत्रकार उपसंहार करते हुए कहते हैं-' एस विही' इत्यादि । इस सूत्रकी व्याख्या प्रथम उद्देशमें की जा चुकी, है अतः वहींसे जान लेनी चाहिये ॥१७॥ ॥नववें अध्ययनका चौथा उद्देश सम्पूर्ण ॥९-४॥ HALA સર્વથા ક્ષયથી આત્માની શુદ્ધિ કરી ચારિત્ર અંગીકાર કરી, દીક્ષા ધારણ કરી મન, વચન અને કાયાની પ્રવૃત્તિને સુપ્રણિધાનયુક્ત કરતાં કરતાં કષાયરૂપી અગ્નિના પ્રશમથી અત્યંત શીતળ બન્યા અને જીવનપર્યન્ત પાંચ સમિતિ અને ३] शुस्तिथी युक्त मत यया. (१६) डवे सूत्र४२ ५ २ ४२di ४९ छ--' एस विही' त्याहि. આ સૂત્રની વ્યાખ્યા પ્રથમ ઉદ્દેશમાં કહેવાઈ ગયેલ છે, એટલે ત્યાંથી સમજી देवी ने. (१७) નવમા અધ્યયનનો ચેાથો ઉદ્દેશ સમાપ્ત છે ૯-૪ છે श्री. मायाग सूत्र : 3

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