Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 694
________________ १५ शान्तस्वभावी वैराग्यमूर्ति तत्ववारिधि, धैर्यवान श्री जैनाचार्य पूज्यवर श्री श्री १००८ श्री खूबचंदजी महाराज साहेबने सूत्र श्री उपासकदशाङ्गजी को देखा । आपने फरमाया कि पण्डित मुनि घासीलालजी महाराज ने उपासकदशाङ्ग सुत्रकी टीका लिखने में बडा ही परिश्रम किया है। इस समय इस प्रकार प्रत्येक सूत्रोंकी संशोधनपूर्वक सरल टीका और शुद्धहिन्दी अनुवाद होने से भगवान निर्ग्रन्थों के प्रवचनों के अपूर्व रस का लाभ मिल सकता है। * बालाचोर से भारतरत्न शतावधानी पंडित मुनि श्री १००८ श्री रतनचन्दजी महाराज फरमाते हैं कि उत्तरोत्तर जोतां मूल सूत्रकी संस्कृत टीकाओ रचवामां टीकाकारे स्तुत्य प्रयास कर्यो छे, जे स्थानकवासी समाज माटे मगरूरी लेवा जेवु छे, वली करांचीना श्री संधे सारा कागळमां अने सारा टाईपमा पुस्तक छपावी प्रगट कर्यु छे जे एक प्रकारनी साहित्य सेवा बजावी छे. बम्बई शहर में विराजमान कवि मुनि श्री नानचन्दजी महाराजने फरमाया है कि पुस्तक सुन्दर है प्रयास अच्छा है। શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩ * खोचन से स्थविर क्रियापात्र मुनि श्री रतनचन्दजी महाराज और पंडित रत्न मुनिश्री समर्थमलजी महाराजश्री फराते हैं कि - विद्वान् महात्मा पुरुषों का प्रयत्न सराहनीय है, जैनागम श्रीमद उपादशाङ्गसूत्र की टीका, एवं उसकी सरल सुवोधनी शुद्ध हिन्दी भाषा बडी ही सुन्दरता से लिखी है। *

Loading...

Page Navigation
1 ... 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719