Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 660
________________ आचारागसूत्रे अन्यच्च-स्नानं मददपकरं, कामाकं प्रथम स्मृतम् । ___ तस्मात्कामं परित्यज्य, नैव स्नान्ति दमे रताः ॥१॥ अपरंच-" मलमइलपंकमइला, धूलीमइला नते नरा मइला । जे पावपंकमइला, ते मइला जीवलोयंमि" ।।१।। छाया--"मलमलिनाः पङ्कमलिना,-धूलीमलिना न ते नरा मलिनाः। ये पापपङ्कमलिना,-स्ते मलिना जीवलोके ॥१॥" इति । तथा संवाहनं हस्तादिना शरीरपरिकर्म, अस्थ्यादिसुखार्थ गात्रनिष्पीडनम् । तथा दन्तप्रक्षालन-काष्ठेन चूर्णादिना वा दन्तमार्जनं च तस्य भगवतः श्रीवर्द्धमानस्वामिनो न कल्पते ॥२॥ और भी-स्नानं मदर्पकरं, कामाङ्गं प्रथमं स्मृतम् । तस्मात् कामं परित्यज्य, नैव स्नान्ति दमे रताः॥१॥ फिर भी-मलइलपंकमइला, धूलीमइलान ते नरा मइला। जे पावपंकमइला, ते मइला जीवलोयमि ॥१॥ भावार्थ--पानीको शरीर पर डालना, अथवा उससे शरीरको गीला करना इसका नाम स्नान नहीं है। ऐसे लौकिक स्नानसे न बाह्य शरीरकी शुद्धि होती है और न आभ्यन्तर आत्माकी ही। इन दोनों प्रकारकी शुद्धिका कारण दमस्नान है। पांच इन्द्रिय और मनको वश करनेका नाम दम है। इससे (पांच इन्द्रियोंके वश करने से ) शरीरकी, और मनको वश करनेसे आत्माकी शुद्धि होती है, इसीका नाम बाह्य और आभ्यन्तर शुद्धि है। दम को स्नान इस लिये कहा है कि जिस प्रकार जल स्नानसे शरीर आदिके ऊपरका लगा हुआ मैल दूर हो जाता है श्री ५६४-स्नानं मददपकरं, कामाकं प्रथमं स्मृतम् । तस्मात् कामं परित्यज्य, नैव स्नान्ति दमे रताः ॥१॥ ३री ५-“मलमइलपंकमइला, धूलीमइला न ते नरा मइला । जे पापपंकमइला, ते मइला जीवलोयंमि" ॥१॥ ભાવાર્થ-પાણીને શરીર ઉપર ઢોળવું, અથવા તેનાથી શરીરને છેવું તેનું નામ સ્નાન નથી પણ એવા લૌકિક સ્નાનથી નથી બાહા શરીરની શુદ્ધિ થતી કે નથી તેમ અંદરના આત્માની પણ, આ બન્ને પ્રકારની શુદ્ધિનું કારણ દમસ્નાન છે. પાંચ ઈન્દ્ર અને મનને વશ કરવાનું નામ દમ છે. આથી પાંચ ઇન્દ્રિયને વશ કરવાથી શરીરની અને મનને વશ કરવાથી આત્માની શુદ્ધિ થાય છે. તેનું નામ અત્યંતર શુદ્ધિ છે. દમસ્નાન આ માટે કહેવાયેલ છે કે જે પ્રકારે જળસ્નાનથી શરીર વગેરે ઉપર લાગેલ મેલ દુર થઈ જાય છે એ પ્રકારે આ દમકિયાથી श्री. मायाग सूत्र : 3

Loading...

Page Navigation
1 ... 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719