Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रुतस्कन्ध. १ विमोक्ष अ. ८. उ. १
३८९ विपतिपत्तौ एवं यूयं जानीत-बुध्यध्वम् , यस्तेषाम् 'अस्ति लोकः'' नास्ति लोकः' इत्याद्येकान्तवादः सः अकमात्= अकस्मात्' इति संस्कृतस्यैव मगधदेशे प्रसिद्धत्वान्मूले गणधरैस्तदेव गृहीतम् , 'कस्मात्' इति हेतौ; न कस्मात् अकस्मात् निर्हेतुकोऽस्तीत्यर्थः। तथा हि-यवेकान्तः, 'अस्ति लोकः' इत्यत्रास्तित्वसमानाधिकरणत्वं लोकस्य स्यात् ततश्च 'यदस्ति तल्लोकः' इति व्याप्तेः 'अलोकोऽस्ति' इत्यत्राऽस्तित्वरूपहेतोः अपेक्षा नास्ति और नास्तिकी अपेक्षा अस्ति। कोई वादी लोकमें अस्तित्व धर्म स्वीकार करता है दूसरा उसमें नास्तित्व । ये दोनों कथन परस्पर विरुद्ध इसलिये हैं कि ये नयकी विवक्षासे रहित हैं। इसीका नाम एकान्तवाद है। इसीलिये इनमें अपनी २ मान्यतानुसार वादियोंको विवादका प्रसंग आता है । सूत्रकार कहते हैं.कि इस विप्रतिपत्तिमें आप लोग यही समझो कि उनका "अस्ति लोकः, नास्ति लोकः” यह जो एकान्तवाद है वह अकस्मात्-निर्हेतुक है। "अकस्मात्" यह निर्हेतुकताबोधक पद संस्कृत भाषाकी तरह मगधदेशकी भाषामें भी प्रसिद्ध है, इस लिये गणधरोंने भी मूल सूत्र में उसी पदका ग्रहण किया है। "कस्मात्" यह हेत्वर्थमें आता है, जो "कस्मात् " नहीं वह “ अकस्मात् " है। इसका अर्थ निर्हेतुक" होता है, अर्थात् उनका यह वाद निर्हेतुक है । जैसे कि" अस्ति लोकः" इस कथनमें अस्तित्वके साथ समानाधिकरणता एकान्तरूपसे लोकमें मानी जावे तो “यदस्ति तल्लोकः” जो है वह लोक हैઅપેક્ષા નાસ્તિ અને નાસ્તિની અપેક્ષા અસ્તિ. કેઈવાદી લેકમાં અસ્તિત્વ ધર્મનો સ્વીકાર કરે છે બીજા નાસ્તિત્વને. આ બંને વાતે પરસ્પર વિરૂદ્ધ આ માટે છે કે એ નયની વિવક્ષાથી રહિત છે. આનું નામ એકાન્તવાદ છે. આ માટે એમાં પોતપોતાની માન્યતા અનુસાર વાદવાળાઓને વિવાદને પ્રસંગ આવે છે. સૂત્રકાર
छ ? साभसामा ४ मा २५ मे समन्न है मनु 'अस्ति लोकः' नास्ति लोकः' 21 ने मेन्तवा छे थे अकस्मात्-डेतुकारने छ. ' अकस्मात्' से હેતુ વગરના બોધક પદ સંસ્કૃત ભાષાની જેમ મગધદેશમાં પણ પ્રસિદ્ધ છે. આ भाट धराये पर भूण सूत्रमा से पहने अड] ४२८ छ. “कस्मात् " ॥
पर्थमा मावे छ. २ “कस्मात् " नही ते “अकस्मात् ” छ अनी अर्थ हेतु वरना थाय छे. अर्थात् मेमनी से पा नितु छ. " अस्ति लोकः " આ વાક્યમાં અસ્તિત્વની સાથે સમાનાધિકરણતા એકાન્તરૂપથી લેકમાં માનवामां आवे तो “ यदस्ति तल्लोकः" ते सो छ २प्रा२नी व्यासि
श्री. मायाग सूत्र : 3