Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्रुतस्कन्ध. १ लोकसार अ. ५. उ. ६
तदेव प्रकटयन्नुपसंहरति-' से न ' इत्यादि
यद्वा-'न दीर्घ' इत्यादिना शब्दादिविशेषो निराकृतः पुनस्तत्सामान्यनिराकरणायाह-' से न' इत्यादि।
मूलम्-से न सद्दे न रूवे न गंधे न रसे न फासे इच्चेव त्तिबेमि ॥ सू०७॥
छाया-स न शब्दो नरूपं न गन्धो न रसो न स्पर्श इत्येवमिति ब्रवीमि ।।०७।।
टीका-'स न' इत्यादि-स मुक्तात्मा न शब्दस्वरूपः, न रूपात्मकः, न एकान्त रूपसे नहीं समझना चाहिये । अन्यथा वे सर्वथा अवक्तव्य होने से अवक्तव्य इस शब्दके द्वारा भी नहीं कहे जा सकेंगे, तथा रूप रस गन्धादिका निषेध भी वहां नहीं हो सकेगा। तथा इनके अभावात्मक"रूपादि रहित हैं " इत्याकारक-बोधके वे ग्राह्य भी नहीं होंगे। इस लिये यह सब कथन सिद्ध स्वरूपकी पूर्ण दशाका वाचक कोई शब्द नहीं है इतने ही में चरितार्थ समझना चाहिये । सू०६॥
इसी पूर्वोक्त विषयको पुनः प्रकट करते हुए सूत्रकार उसका “सेन" इत्यादि सूत्रद्वारा उपसंहार करते हैं, अथवा-"न दीर्घः" इत्यादि पदों द्वारा उस अवस्थामें दीर्घत्वादि-विशेष-धर्मवाचक विशेष शब्दों की विषयताका ही निषेध किया गया है, सामान्य रूपसे शब्दात्मकतादिका निषेध नहीं किया है; सो “से न” इत्यादि सूत्रद्वारा सामान्यरूपसे शब्दात्मकतादिका वहां निषेध करते हुए सूत्रकार कहते हैं
वह मुक्त आत्मा न शब्दस्वरूप हैं, न रूपस्वरूप है, न गंधस्वरूप આ કથન કોઈ એકાન્ત રૂપથી સમજવું ન જોઈએ, અન્યથા એ સર્વથા અવક્તવ્ય હોવાથી અવક્તવ્ય આ શબ્દથી પણ કહી શકાય નહિ; તેમ રૂપ, રસ, ગંધ ઈત્યાદિને નિષેધ પણ ત્યાં થઈ શકે નહિ. તથા એના અભાવાત્મક-“રૂપાદિ રહિત છે” એવી બોધથી પણ એ ગ્રાહી નહિ થાય આ માટે સિદ્ધસ્વરૂપની પૂર્ણ દશાને વાચક કોઈ શબ્દ નથી–એટલામાં જ આ બધાં કથન ચરિતાર્થ સાર્થક સમજવું જોઈએ (સૂ૦૬)
से पूर्वोत विषयने पुनः प्राट ४२त सूत्र२ मेन। “ से न" त्या सूत्र द्वा२५सा२ ४२ छ. 4241-" न दीर्घः "त्यादि पोथी को. २५वस्थामा वी. ત્વાદિ–વિશેષ-ધર્મવાચક વિશેષશબ્દોની વિષયતાને જ નિષેધ કરવામાં આવ્યું છે. सामान्य३५थी शम्हात्मता माहिना निषेध नथी ध्यो, भाटे "सेन" त्या सूत्रथी સામાન્ય રૂપથી શબ્દાત્મકતા આદિનો ત્યાં નિષેધ કરતાં સૂત્રકાર કહે છે –
એ મુક્ત આત્મા ને શબ્દસ્વરૂપ છે, ન તે રૂપસ્વરૂપ છે, ન ગંધસ્વરૂપ
श्री. सायासंग सूत्र : 3