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षष्ठ अधिकरण अन्न से वीर्य बनता है या नहीं? इस संशय पर विरुद्ध मत के निराकरण पूर्वक वीर्य भाव की स्वीकृति ।
सप्तम अधिकरण
पुरुप द्वारा बीर्य का सिञ्चन होने पर ही स्त्री योनि से संतान होती है अथवा स्वतः होती है ? इस संशय पर पुरुष-स्त्री साहचर्य मत की पुष्टि ।
अष्टम अधिकरण "तस्या आहुतेर्गर्भः सम्भवति" वाक्य में जो वीर्य की आहुति से गर्भ होने की बात कही गई है, तो क्या योनि के अन्दर वीय के स्थित हो जाने पर गर्भसंज्ञा होती है अथवा भीतर के शरीर के रूप में बाहर आने पर गर्भ संज्ञा होती है ? इस पर पूर्व पक्ष योनिस्थित को गर्भ कहता है, भाष्यकार उसका खण्डन कर योनि से बाहर शरीर रूप से प्राप्त वस्तु को माता से परिपालित होने से गर्भ संज्ञक सिद्ध करते हैं योनि में तो उसकी कलिल, बुद्बुद् कर्कन्धु आदि संज्ञायें होती है।
द्वितीय पाद
प्रथम अधिकरण स्वप्नसृष्टि सत्य है या मायामात्र ? पूर्वपक्षं वाले सत्य कहते हैं । भाष्यकार सतर्क उसे मायामात्र सिद्ध करते हैं ।
द्वितीय अधिकरण सुशुप्ति में प्रपञ्चनिर्माण रहता हैं नहीं ? इस संशय पर अस्तित्व पक्ष का खण्डन कर अभाव पक्ष का सिद्धान्ततः समर्थन ।
तृतीय अधिकरण सुशुप्ति दो प्रकार की है, एक तो जीव का किसी नाड़ी विशेष में प्रवेश और दूसरी अन्तस्थ परमात्मा के समीप जीव का गमन । इस संबंध में संशय किया गया कि जीव नाड़ी विशेष या भगवत् समीप से लौट कर जागता है या, उसी स्थान में जाग जाता है ? इस पर लौटकर जागने के पक्ष का निराकरण कर उस स्थान पर ही जागने की बात को सिद्धान्ततः स्वीकारते हैं ।