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। ४१ ) पञ्चम अधिकरण
मुख्य प्राण स्वतन्त्र है या परतन्त्र ? स्वतन्त्र पक्ष का निरास कर सिद्धान्ततः प्राण की परमात्माधीनता और व्यवहार रूप से जीवाधीनता की स्वीकृति ।
षष्ठ अधिकरण वागादि इन्द्रियों की प्रवृत्ति स्वतः होती है या देवताधिष्ठित ? इस संशय पर स्वतः प्रवृत्ति का निराकरण कर देवताधिष्ठित प्रवृत्ति का समर्थन ।
सप्तम अधिकरण अग्नि आदि का जो वागाद्यधिष्ठातृत्व है, वह स्वतंत्र या अग्नि सहित है ? स्वतन्त्र पक्ष का निराकरण कर प्राण साहचर्यपक्ष का समर्थन ।
अष्टम अधिकरण इन्द्रियाँ, प्राण की वृत्तिरूप हैं अथवा भिन्न तत्व हैं ? इस संशय पर पूर्वपक्ष का निराकरण कर इन्द्रियों का भिन्न तत्त्व के रूप में निरूपण ।
नवम अधिकरण नाम रूप प्रपञ्च का कर्ता जीव है या परमात्मा ? इस संशय पर जीव पक्ष का निरास कर परमात्मा पक्ष का समर्थन ।
दशम अधिकरण "अन्नमयं हि सौम्य मनः आपोमयः प्राणस्तेजोमयी वाक्" तथा "एतस्माज्जायते प्राणो मन; सर्वेन्द्रियाणि च" श्रुतियों में किए गए विप्रधिषेध से संशय होता है कि वाक् प्राण और मन भौतिक हैं अथवा स्वतन्त्र ? इस पर भौतिक पक्ष का निरास कर स्वतन्त्र पक्ष को सिद्धान्ततः स्वीकारते हैं निर्णय करते हैं कि अन्नादि के द्वारा मन आदि भली-भाँति अपने कार्य को करने में समर्थ होते हैं न कि अन्नमय हो जाते हैं।
प्रथम अधिकरण
जीव की ब्रह्मज्ञानोपयोगी शरीर की निष्पत्ति के लिए जो गति होती है