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पंचम अधिकरण जलकी सृष्टि साक्षात् ब्रह्म से होती है या तेज से ! साक्षात् ब्रह्म जन्यता के पक्ष का निराकरण कर तेजोमावापन्न ब्रह्म से ही जल सृष्टि का समर्थन ।
षष्ठ अधिकरण छान्दोग्य में "ता अन्नमसृजन्ते" इत्यादि में अन्न की सृष्टि बतलाई गई है, यह अन्न शब्द लोक प्रसिद्ध चावल-गेहूँ आदि का बाचक है या पृथ्वी का ? इस पर पूर्वपक्ष का निराकरण कर अन्न शब्द की पृथिवीवाचकता का समर्थन ।
सप्तम अधिकरण
तैत्तरीय में 'आकाशाद् वायुः" इत्यादि में जो उत्पत्ति का उल्लेख किया गया है वह, इनकी स्वतंत्र सृष्टिता का है अथवा ब्रह्माधीन सृष्टिता का ? पूर्वपक्ष का निराकरण कर इनकी ब्रह्माधीन सृष्टिता का समर्थन करते है।
अष्टम अधिकरण
सृष्टि क्रम से ही प्रलय होती है या विपरीत क्रम से ? इस पर पूर्वपक्ष का निराकरण कर सृष्टि विपरीत प्रथिव्यादि क्रम से प्रलय सिद्धान्त का निर्धारण।
नवम अधिकरण तैत्तरीय में आकाशादि से अन्न तक उत्पत्ति का वर्णन कर अन्नमय आदि का निरूपण किया गया है उस प्रसंग में अन्नमय और प्राणमय की सामग्री की उत्पत्ति पूर्व में ही कही है। आनन्दमय तो परमात्मा ही है बीच में विज्ञानमनसी की उपस्थित बतलाई गई है तो ये दोनों तत्त्व उत्पन्न होते हैं या आनन्दमय की तरह अज ही है इस पर पूर्वपक्ष उत्पत्ति मानता है । इसका निराकरण सिद्धान्त रूप से निश्चित करते हैं कि विज्ञानमय तो जीव ही हैं तथा मनोमय ज्ञान स्वरूप है अतः दोनों भूत भौतिकवर्ग में नहीं आते इसलिए उनकी उत्पत्ति की बात असंगत है।
दशम अधिकरण
जीव का जन्म होता है या नहीं इस पर जीवोत्पत्तिवाद का निराकरण कर जीव के जन्म राहित्य मत को सिद्धान्ततः स्वीकारते है ।