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पदार्थ हैं, जीव चेतन है और अजीव-मही महीधर, आस्रव, संवर, निर्जर, बन्ध और मोक्ष आदि छः प्रकार के हैं। इस प्रकार कुल सात पदार्थ हैं, जो कि स्यादास्ति, स्यान्नास्ति स्यादास्ति च नास्ति च, स्यादवक्तव्यः, स्यादस्ति चावक्तव्यश्च, स्यान्नास्ति-चावक्तव्यश्च, स्यादास्ति च नास्ति चावक्तव्यः इयादि सप्तभङ्गीन्याय से साध्य है । उनके कथनानुसार जीवादि प्रत्येक पदार्थ में यह सप्तभङ्गीन्याय लागू होता है । इस मत का निराकरण करते हैं ।
सप्तम अधिकरण तार्किक मत सिद्ध जीवभिन्न ईश्वरवाद का खण्डन कर अद्वैत मत को सिद्धान्तः निश्चित करते हैं।
अष्टम अधि करण पांचरात्र भागवत मत में जो वासुदेव से संकर्षण नामक जीव, संकर्षण से प्रद्युम्न नामक मन तथा प्रद्युम्न से अनिरुद्ध नामक अहंकार की उत्पत्ति मानी गई है उसको सिद्धान्तः असंगत कहते हैं ।
तृतीतपाद इस पाद में श्रु तिवाक्यों में जो परस्पर विरोध प्रतीत होता है उसका परिहार करते हैं।
प्रथम अधिकरण आकाश उत्पन्न होता है या नहीं ? पूर्वपक्ष उत्पत्ति नहीं मानता, सिद्धान्तः उत्पत्ति स्वीकारते हैं।
द्वितीय अधिकरण वायु की उत्पत्ति होती है या नही ? पूर्वपक्ष के अनुत्पत्तिवाद का निराकरण कर सिद्धान्ततः उत्पत्ति की स्वीकृति ।
तृतीय अधिकरण सत् स्वरूप ब्रह्म से उत्पत्ति का समर्थन ।
चतुर्थ अधिकरण तेज, साक्षात् ब्रह्म से उत्पन्न होता है या वायु से होता है ? साक्षात् ब्रह्म से होता है इस पूर्व पक्ष का निराकरण कर, वायुभावापन्न ब्रह्म तेज का जनक है ऐसा सिद्धान्त निर्णय करते हैं।