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( ४२ ) वह केवल होती है या संस्कुत भूतों के साथ होती है ? इस संशय पर केवल पक्ष का निराकरण कर संस्कृत भूत समुदाय के साहचर्य पक्ष को सिद्धान्ततः निर्णय करते हैं । तथा निश्चित करते हैं कि निष्काम यज्ञ करने वाले स्वर्ग जाकर यज्ञ के अवान्तर फल को भोगकर पञ्चाग्नि विद्या के प्रकार से मोक्षोपयोगी देह को प्राप्त करते हैं। पञ्चाग्नि विद्या का प्रकार छान्दोग्य में इस प्रकार वर्णित है "प्रथम श्रद्धा की आहुति अग्नि में, द्वितीय धूम की आहुति आकाश में, तृतीय मेघ की आहुति पृथिबी में, चतुर्थ अन्न की आहुति पुरुष के मुख में, पञ्चम् बीर्य की आहुति स्त्री योनि में होने पर अन्ततः जीव मानव शरीर के रूप में प्रकट होता है ।" इस पंचाग्नि विद्या के प्रकार से जो जीव की गति होती है वह केवल नहीं होती अपितु संस्कृत भुत समुदाय के साथ होती है ।
द्वितीय अधिकरण
जीव स्वर्ग जाकर वहाँ यज्ञ के अवान्तर फल को भोगकर जब लौटता है तब उसके भोग्य फल कुछ अवशिष्ट भी रहते हैं या समाप्त हो जाते हैं ? इसपर अवशिष्ट पक्ष को सिद्धान्ततः स्वीकारते हैं।
तृतीय अधिकरण पापी और पुण्यात्मा दोनों को ही आहुति संबंध से सोमभाव प्राप्त होता है या किन्हीं पुण्यात्मा को ही प्राप्त होता है ? इस पर पूर्वपक्ष का कथन है कि दोनों को ही सोमभाव की प्राप्ति होती है सिद्धान्तः निर्णय करते हैं कि-पापियों को यमलोक को प्राप्ति होती है तथा किन्हीं पुण्यात्माओं को हो सोमभाव की प्राप्ति होती है।
चतुर्थ अधिकरण
अचिरादिमार्ग और धूमादिमार्ग के अतिरिक्त तीसरा यम मार्ग भी है या नहीं ? इस पर विपरीत पक्ष का निराकरण कर सिद्धान्ततः यम मार्ग के अस्तित्व की स्वीकृति।
पञ्चम अधिकरण "वृष्टेरन्सं भवति" यह बात असंगत है या संगत ? इस संशय पर पूर्वपक्ष का विरोध कर उक्त कथन को सुसंगत प्रमाणित करते हैं ।