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विषयानुक्रमणिका
अष्टादश पर्व वरुणके युद्धसे लौटकर पवनंजयका घर आना पर वहाँ अंजनाको न देख उसकी खोजमें घरसे
निकल जाना । पवनंजयका भूतरव नामक वनमें मरनेका निश्चय । अनन्तर विद्याधरों द्वारा उनकी खोज और अंजनासे मिलापका वर्णन
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एकोनविंशतितम पर्व वरुणके विरुद्ध होनेपर रावणका सब राजाओंको बुलाना। हनुमान्का जाना, रावणके द्वारा हनु.
मान्की बहुत प्रशंसा, हनुमान आदिका वरुणके साथ युद्ध और वरुणको पराजय, वरुणका पकड़ा जाना, कुम्भकर्ण द्वारा वरुणके नगरको स्त्रियोंका पकड़ा जाना तथा रावणको पता
चलने पर उसके द्वारा कुम्भकर्णको फटकार आदि रावणका वरुणको समझाना, हनुमान के लिए चन्द्रनखाकी पुत्रीका देना, तथा रावणके साम्राज्यका
वर्णन
४११
४१७
विंशतितम पर्व
चौबीस तीर्थंकरों तथा अन्य शलाका पुरुषोंका वर्णन
४२४
४४४
एकविंशतितम पर्व भगवान् मुनिसुव्रतनाथ तथा उनके वंशका वर्णन इक्ष्वाकु वंशके प्रारम्भका वर्णन, उसी अन्तर्गत राजा वज्रबाह तथा उदयसुन्दरके सराग तथा
विराग दशाका वर्णन-तथा राजा कीर्तिधरका वर्णन, सूकोशलका जन्म और कीतिघरका दीक्षा लेना
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द्वाविंशतितम पर्व
कीर्तिधर मुनिका उनकी स्त्री द्वारा नगरसे निकाला जाना, घायके रोदनसे सुकोशलको यथार्थ
बातका पता चलना, सुकोशलका दीक्षा लेना, माताका मरकर व्याघ्री होना और वर्षायोगमें स्थित सुकोशलका भक्षण करना, कीर्तिधर मुनिके द्वारा व्याघ्रीका सम्बोधन तथा उसकी
सद्गति आदिका वर्णन, कीतिधर मुनिका निर्वाण गमन राजा हिरण्यगर्भ, नहुष तथा सौदास आदिका वर्णन । राजा सौदासको नरमांस खानेकी आदत
पड़ना आदि । तदनन्तर इसी वंशमें राजा अनरण्यके दशरथकी उत्पत्तिका वर्णन
त्रयोविंशतितम पर्व
नारद द्वारा राजा दशरथ और राजा जनकको रावणके दुर्विचार सुनाकर सचेत रहनेका वर्णन ।
राजा जनक और दशरथका घरसे बाहर निकलकर समय काटना और विभीषण द्वारा इनके पुतलोंका शिर काटना आदि
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