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पद्मपुराणे
त्रयोदश पर्व ईन्द्रके पिता सहस्रारका रावणकी सभामें उपस्थित होकर इन्द्रको बन्धनसे छुड़ाना, रावणका
सहस्रार के प्रति नम्रता प्रदर्शन आदि इन्द्र जिनालय में बैठा था, वहाँ निर्वाणसंगम मुनिराजका आना, उनसे इन्द्रका पूर्व भव वृत्तान्त
पूछना, दीक्षा लेना तथा निर्वाण प्राप्त करना
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चतुर्दश पर्व रावणका परिकरके साथ सुमेरुसे लौटना, मार्गमें सुवर्णगिरि पर्वतपर अनन्तबल मुनिराजको __ केवलज्ञान उत्पन्न हुआ जान वहाँ पहुँचना । उनके मुखसे धर्मका विस्तारके साथ वर्णन जो स्त्री मुझे नहीं चाहेगी मैं उसे बलात् नहीं चाहूँगा... इस प्रकार रावणका प्रतिज्ञा ग्रहण
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पंचदश पर्व हनुमान् कथा-उसके अन्तर्गत आदित्यपुरमें राजा प्रह्लाद और उनकी स्त्री केतुमतीके पवनंजय
पुत्रका होना । दन्ती गिरि ( दूसरा नाम महेन्द्र-गिरि ) पर राजा महेन्द्रका वर्णन । उसको हृदयवेगा रानीसे अंजनाकी उत्पत्ति, पवनंजय और अंजनाके विवाहका विस्तृत वर्णन, उसके अन्तर्गत मिश्रकेशी दूतीके बकवादके कारण पवनंजयका अंजनाके प्रति विद्वेष उत्पन्न होना
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षोडश पर्व अंजनाकी विरहदशाका वर्णन रावणका वरुणके साथ यद्ध तथा पवनंजयका उसमें जाना मार्गमें मानससरोवरपर चकवाके बिना तड़पती हई चकवीको देख पवनंजयको अंजनाकी
दशाका स्मरण होना, तथा छिपकर उसके पास आना; प्रहसित मित्रके द्वारा अंजनाको
पवनंजयके आनेका समाचार, पवनंजयका क्षमा याचन सम्भोग शृङ्गारका वर्णन
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सप्तदश पर्व
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अंजनाका गर्भके चिह्न प्रकट होनेपर केतुमती के द्वारा उसे कलंकित कर घरसे निकालना।
उसका पिताके घरपर जाना, कंचुकी द्वारा उसके गर्भका समाचार पा उसे आश्रय नहीं देना। फलतः अंजना अपनी वसन्तमालिनी सखीके साथ वनमें जाकर एक पर्वतके समीप
पहुँचनागुफामें मुनिराजके दर्शन और उनके द्वारा अंजना तथा हनुमान्के पूर्वभवोंका वर्णन, मुनिराजका
सान्त्वना देकर अन्यत्र जाना और उस गुफामें सखीके साथ अंजनाका रहना, रात्रिके समय
सिंहका आगमन, गन्धर्व द्वारा उनकी रक्षा । गन्धर्व द्वारा संगीत अंजनाके पुत्र जन्म, प्रतिसूर्य विद्याधरका आना, परस्परका परिचय, ज्योतिषीके द्वारा हनमानके
शुभाशुभ ग्रहोंका विचार । विमानमें बैठकर सबका प्रतिसूर्यके साथ जाना, हनुमान्का नीचे गिरना, पत्यरका चूर-चूर होना आदि
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