________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३० ) रहता है । इसके सात अंग हैं और उन्नीस मुख । यह संसार के स्थूल पदार्थों का सेवन करता है । ____जीवन के एकाङ्क (इकाई) का नाम है 'अनुभव' जो तीन भागों ('अनुभवी', 'अनुभत' और इन दोनों को मिलाने वाली क्रिया 'अनुभव') में विभक्त किया जाता है। इस स्थूल संसार के विज्ञानाचार्यों ने बाह्य-जगत के पदार्थों के अन्वेषण को अपना कार्य-क्षेत्र बनाया हुआ है। इसके विपरीत विविध धर्मों तथा न्याय-शास्त्रियों द्वारा भीतर के जगत की खोज की जाती है । इस भीतरी खोज में इन्होंने जीवन-रूपी प्राभूषण में तीन मणियाँ ढूंढ निकालीं । इन्हें जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्त अवस्थाएं कहा जाता है । उन्होंने यहभी बताया है कि चेतना के इन तीन समक्षेत्रों में हमारी चेष्ठाएँ भिन्न प्रकार से होती रहती हैं मानों हम तीन प्रकार का व्यक्तित्व रख रहे हों। हमारा 'जाग्रत' व्यक्तित्व 'स्वप्न' व्यक्तित्व से सर्वथा भिन्न है। इसी प्रकार सुषुप्तावस्था के हमारे अनुभव उन अनुभवों से एकदम अलग होते हैं जिनकी हमें पहली दो (जाग्रत तथा स्वप्न) अवस्थाओं में अनुभूति होती है ।
उपनिषद् हमें इस अनुभव-कर्ता के स्थापन, इसकी पहचान और कार्यक्षेत्र के विषय में निश्चित् जानकारी देते हैं। ऋषियों ने जाग्रतावस्था के इस अनुभवी को संस्कृत में 'वैश्वानर' कहा है। यह वैश्वानर (अथवा विश्व) जाग्रतावस्था की चेतना को अनुभव करता तथा संसार के बाह्य-पदार्थों का उपभोग करता है । इन पदार्थों से परिचित होने के साथ वैश्वानर इन्द्रिय-सुख के क्षेत्र में स्वच्छंद रूप से विचरता है। यही शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का प्रास्वादन करता है । इस पञ्चेन्द्रिय सीमित क्षेत्र के अतिरिक्त इसे और किसी उपभोग का अनुभव नहीं होता । उपनिषदों के पारंगत विद्वानों ने कहा है कि 'विश्व' के सात अंग तथा उन्नीस मुख हैं। स्थूल बुद्धि वाले व्यक्ति इस तरह के कथनों को समझने तथा इनके लालित्य का आनन्द लेने में असमर्थ होते हैं । वे यह नहीं जान पाते कि इनमें कितना महत्वपूर्ण एवं सारभूत भण्डार छिपा रहता है । वे तो इन शब्दों का शब्दशः अर्थ निकाल कर इन्हें
For Private and Personal Use Only