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( २५७ ) अनुभव करने के कारण बाह्य-संसार के पदार्थों की वास्तविकता सिद्ध हो जाती है।
बाह्य-प्रथं वादियों की इस युक्ति का श्री गौड़पाद द्वारा वेदान्त के किसी तथ्य द्वारा समाधान नहीं किया जाता बल्कि इस विचार के विरोधी 'विज्ञान-वादी' बौद्धों की युक्तियों से ही ऐसा किया जाता है । इस विचार-धारा वालों की युक्तियों का अगले मंत्र में उल्लेख करना ही बाह्य-अर्थ वादियों के लिए पर्याप्त उत्तर समझा गया है ।
तर्क-दृष्टि से आध्यात्मिक वासना की सत्ता को तो माना जा सकता है; किन्तु परम-सत्ता या वस्तुओं की यथार्थता के विचार से तथाकथित कारण किसी दशा में बना नहीं रह सकता।
उपरोक्त 'विज्ञान-वादी' आन्तरिक आदर्शवादी हैं जिनके विचारानुसार सब पदार्थ हमारे भीतर वासनाओं के रूप में विद्यमान रहते हैं । इस विचार को मंत्र २५, २६ और २७ में समझाया जा रहा है ।
यथार्थवादी पहले ही विरोध में कह चुके हैं कि यदि हम स्थूल संसार की वास्तविकता को स्वीकार नहीं करते तो हमारे लिए विविध वस्तुओं को पहचानना और दुःख का अनुभव करना सम्भव न होगा। इसका उत्तर स्वयं विज्ञान-वादी देते हैं । सांख्यिकी और वैशेषिकीय भी यथार्थवादी समझे जाते हैं।
प्रज्ञप्तेः सन्निमित्तत्वमिष्यते युक्तिदर्शनात् । निमित्तस्यानिमित्तत्वम् इष्यतेभूत दर्शनात ॥२५॥ जहाँ तक युक्ति-दर्शन का सम्बन्ध है हमें विविधता के तथ्य को मानना ही पड़ेगा; किन्तु बुद्धि-दर्शन के दृष्टिकोण से विविध पदार्थों वाले इस संसार की सत्ता भ्रान्तिपूर्ण है।
यथार्थवादियों के विचार को काटने के उद्देश्य से यहाँ विषयि-प्रधान विचार-धारा वालों (Subjectivists) की युक्तियों का ही उपयोग किया जा रहा है । इसका यह अभिप्राय नहीं कि वेदान्तवादी केवल विषय-प्रधान
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