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जीवन के ध्येय को पूरी तरह जान लेने के बिना कोई जीवन मार्ग अर्थ पूर्ण नहीं होता । यह ध्येय कितना ही महान् एवं श्रेष्ठ हो, इसे केवलमात्र जान लेने से हम सुखी नहीं हो सकते; जिस बात की हमें अत्यन्त आवश्यकता है वह यह है कि हमें निर्दिष्ट जीवन-मार्ग पर सहृदयता, विवेक तथा श्रद्धा से अग्रसर होते रहना चाहिए । इस तरह हमें पता चलता है कि जोवन मार्ग और जीवनध्येय दोनों परस्पर अनुपूरक हैं और इनको अलग-अलग उपयोग में लाना सर्वथा अव्यावहारिक होगा ।
'माण्डूक्य' एवं 'कारिका' दोनों मिल कर एक ऐसे ग्रन्थ का प्रतिनिधित्व करते हैं जो जीवन के ध्येय की ओर पूर्ण संकेत तथा इस (जीवन) के व्यापक समायोजन की व्यवस्था करता है और जो निर्दिष्ट ध्येय को प्राप्त करने में पूर्णरूपेण सहायक होता है । इन प्रवचनों में केवल उन विशिष्ट बातों का समावेश नहीं किया गया है जो हमारे पवित्र साहित्य को अलंकृत करती आयी हैं बल्कि इनके द्वारा वर्त्तमान शिक्षित-समाज को भारत के शिरोमणि एवं कीर्तिमान् महर्षियों के दृष्टिकोण को अपनाने की भी समुचित सहायता मिलती है ।
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