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(२७२) की भ्रान्ति के कारण होता है) कोई मनुष्य उस पर विचार करता हुआ उसे स्वप्न में पुनः देख सकता है । मरुस्थल का कोई यात्री दूर से रेत को देख कर उसमें मृग-तृष्णा के (अवास्तविक) जल, लहर, झाग प्रादि की धारणा कर सकता है।
ऐसे ही स्वप्न-द्रष्टा स्वप्न में जाग्रतावस्था की अनुभूतियों को, जो रत्ती भर वास्तविकता नहीं रखती, देखने लगता है ।
नास्त्यसद्ध तुकमसत् सदसद्ध तुकं तथा । सच्च सद्ध तुकं नास्ति सद्ध तुकमसत्कुतः ॥४०॥
अवास्तविक पदार्थ की उत्पत्ति वास्तविक पदार्थ से नहीं हो सकती और न ही अवास्तविक वस्तु से वास्तविक पदार्थ की प्राप्ति हो सकती है। (ऐसे ही) वास्तविक पदार्थ किसी और वास्तविक पदार्थ को जन्म नहीं दे सकता । तो फिर हम कैसे मान सकते हैं कि अवास्तविक पदार्थ का उद्गम एक वास्तविक वस्तु है।
यथार्थ-तत्त्व की दृष्टि से पदार्थों में कारण-कार्य सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता । यहाँ श्री गौड़पाद ने महान् बौद्ध नागार्जुन के चतुर्मुखी तर्क को अपनाया है।
वास्तव में यह मन्त्र ३८वें मंत्र में दिये गये भाव को समझा रहा है। वहाँ विविध पदार्थों वाले संसार के अस्तित्व को संकेतमात्र से बताया गया था । इस मन्त्र में उसको तर्क द्वारा स्पष्ट किया गया है । यहाँ चार संभावनाओं का उल्लेख करने के बाद अन्त में यह सिद्ध करने की चेष्टा की जा रही है कि तार्किक अनुपयुक्तता होने के कारण ऊपर बताये गये विविध विचारों में कोई भी मान्य नहीं हो सकता।
___ इस तरह यहाँ कहा गया है कि-(क) जो प्रस्तु स्वतः अवास्तविक है वह किसी अवास्तविक वस्तु की उत्पत्ति नहीं कर सकती है, जैसे किसी खरगोश के सींगों से हवाई किले का निर्माण होना; (ख) अवास्तविक वस्तु से वास्त
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