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( २७४ ) अपने दैनिक व्यापार में जिस विवेक का साधारणतः उपयोग करता है उससे कहीं अधिक मात्रा में वह विवेक को उपयोग में लाने की क्षमता रखता है । अपने व्यावसायिक एवं राजनैतिक जीवन-क्षेत्र में भी मनुष्य विवेक-शक्ति का अधिकतम मात्रा में उपयोग नहीं कर पाता।
वर्तमान शिक्षा से हमें उस बुद्धि-कौशल एवं पूर्णता की प्राप्ति नहीं होती जो आर्य मनीषियों के विचार में प्राप्त की जी सकती है । इन महर्षियों का विश्वास था कि समाज में विवेक तथा यथार्थ ज्ञान का अधिक मात्रा में संचार किया जा सकता है । मन और बुद्धि को बहुत महान् एवं गौरव-पूर्ण कार्यों के लिए विकसित किया जा सकता है । आध्यात्मिकता एक ऐसा उपाय है जिसके द्वारा हम अलौकिक कार्य करने तथा प्रकृति की वस्तु-योजना के उद्देश्य को प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं।
उपलम्भात्समाचारात् अस्तिवस्तुत्ववादिनाम् ।
जातिस्तु देशिता दुद्धः अजातेस्त्रसतां सदा ॥४२॥ __ यदि बुद्धिमान् व्यक्ति कारणवाद का कभी समर्थन करते हैं तो केवल उन व्यक्तियों के लिए जो परिपूर्ण एवं अजात-तत्त्व को मानने में संकोच करते तथा यज्ञादि में श्रद्धा रखने के कारण अनुभूत पदार्थों को वास्तविक मानते हैं ।
यदि कारण-वाद में कोई यथार्थता नहीं तो उपनिषदों में ब्रह्म' को सृष्टि का मूल कारण क्यों बताया गया है ? 'कारिका' में यहाँ इसे न्यायसंगत ठहराया गया है ।
मात्म-परिपूर्णता को प्राप्त करने की निधि की ग्याख्या करते हुए अद्वैतवाद के ब्याख्यातानों ने कारणवाद का समर्थन किया है ताकि ने साधक, जिन की विवेक-बुद्धि पर्याप्त मात्रा में विकसित नहीं हो पायी, प्रोत्साहित हो सकें। इससे यह न समझा जाए कि उक्त व्याख्याता स्वयं इसकी यथार्थता में आस्था रखते थे। यदि इन मध्यम-वर्ग के छात्रों को प्रारम्भ में ही 'अजातवाद' की व्याख्या दी जाती तो कदाचित् में स्तम्भित हो जाते ।
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