Book Title: Mandukya Karika
Author(s): Chinmayanand Swami
Publisher: Sheelapuri

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Page 327
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१२ ) बीन (विषाद, कामना अथवा भय) ही होते हैं। हमारे मन की साधारण से साधारण चेष्ठा भी, चाहे वह उपयोगी हो अथवा अनुपयोगी, सदा दुःख से दूर रहने, कामना की पूर्ति करने अथवा भय से सुरक्षित रहने की दिशा में होती है। मुक्तावस्था में विषाद, कामना और भय के उपस्थित न रहने का विचार इस उद्देश्य से रखा गया है कि श्री गौड़पाद निज बुद्धि-चातुर्य से हमें उस स्थिति से परिचित कराना चाहते हैं जो हमारे शरीर, मन तथा बुद्धि के मिथ्या बन्धनों से एक दम अलग है । जब तक हम अपने शरीर से अपना सम्बन्ध बनाए रखेंगे तब तक हमें भय से मुक्ति न होगी। मानसिक क्षेत्र में विचरते रहने पर हमारी कामनामों का अन्त नहीं होता । ऐसे ही बुद्धि से संपर्क स्थापित रखे रहने पर हमारी वेदनाएँ समाप्त नहीं हो पातीं । ज्ञान का उदय होने पर हम इस विविध मिथ्यात्व के क्षेत्र से परे हो जाते हैं और हमें इनसे किसी प्रकार की आशंका नहीं रहती। अभूताभिनिवेशाद्धि सदृशे तत्प्रवर्तते । वस्त्वभावं स बुद्ध्वैव निःसंगं विनिवर्तते ॥७९॥ अवास्तविक पदार्थों से लिप्त रहने के कारण मन उन विषयों के पीछे भागने लगता है; किन्तु जब इसे उन पदार्थों की सारहीनता का ज्ञान हो जाता है तब यह (मन) उन (पदार्थों) के प्रति विरक्त भावना लिए हुए पुनः अपने वास्तविक स्वरूप (आत्मानुभूति) को प्राप्त कर लेता है। निदेशिका होने के कारण इस 'कारिका' के हर अध्याय में स्पष्ट हिदायतें दी गयी हैं जिनका पालन करते रहने से साधक अमरत्व के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं । ध्यानावस्था में रहने वाले साधकों को यहाँ एक और लाभप्रद संकेत (Tip) दिया गया है । यहाँ उस गुह्य अध्ययन की व्यवस्था की गयी है जिससे कार्य-कुशलता की प्राप्ति होने के साथ बाह्य-संसार की विविध शक्तियों से मन को सफलता-पूर्वक सुरक्षित रखा जा सकता है । For Private and Personal Use Only

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