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( ३३० ) ... जिन बातों से हमें सजग रहना है वे इन तीन चेतनावस्थानों से सम्बन्ध रखती हैं क्योंकि इनके द्वारा हममें मिथ्याभिमान का संचार होता रहता है। जिस बात को हमने अनुभव करना है वह 'तुरीयावस्था' है। उपरोक्त तीन निम्नावस्थाओं को विवेक-पूर्ण क्रिया-विधि से लांघने पर ही हमें इस चतुर्थावस्था की अनुभूति होगी । जिने गुणों को हमें ग्रहण करना है वे बुद्धिमत्ता, निष्कपटता और मौन से सम्बन्ध रखते हैं। जिन प्रबल कुवासनाओं से हमें मोक्ष पाना है वे राग, द्वेष, काम, क्रोध आदि पाशविक प्रवृत्तियाँ हैं।।
भगवान् शंकराचार्य के विचार में ग्रहण करने योग्य गुण बुद्धिमत्ता, बालक जैसा भोलापन और मौन हैं । आध्यात्मिक अनुभव के लिए इन्हीं परमावश्यक साधनों को उपयोग में लाना होता है । यहाँ बुद्धिमत्ता का अभिप्राय बुद्धि-कौशल एवं विवेक है जो श्रद्धा, गुरु की शुश्रूषा और गुरु के वचनामत को पान करने से प्राप्त हो सकते हैं । अन्त में इस तथ्य को जानना अनिवार्य होगा कि सभी शास्त्रों द्वारा जिस लक्ष्य की ओर संकेत किया गया है वह अद्वैत तथा सनातन है । निष्कपटता का अर्थ वह भोलापन है जो प्रायः एक छोटे बालक में पाया जाता है। इसमें अहंकार, ममत्व, राग और द्वेष का प्रभाव होता है । मौन का अर्थ मन की वह स्थिरता है जो ध्यान-मग्न होने पर कभी ही अनुभव में आती है।
प्रकृत्याऽऽकाशवज्ज्ञ याः सर्वे धर्मा अनादयः । विद्यते न हि नानात्वं तेषां क्वचन किंचन ॥१॥
आकाश के समान सभी तत्व स्वभाव से अनादि एवं निलिप्त हैं। किसी भी समय और अवस्था में उनम कोई नानात्व नहीं पाया जाता।
तुरीयावस्था के द्वारा जिस वास्तविक स्वरूप की अनुभूति होती है उस परमावस्था में द्रष्टा को सामान्य चेतना की इन तीन निम्नावस्थाओं में उपलब्ध मिथ्या संसार की पहचान नहीं रहती तब यह पदार्थमय संसार अद्वैत परमात्म-तत्व में विलीन हो जाता है । हमारे जीवात्मा की अनुभूति के लिए ही
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