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स्वप्न वह स्थिति है जिसके अनुभूत सुख और दुखों को साधारण मनुष्य भी वास्तविक नहीं मानते । माया जाल के द्वारा दिखाया जाने वाला हाथी भी असल हाथी नहीं माना जाता जिससे इस माया-हस्ती के उपलब्ध होने या चले जाने पर हमें किसी प्रकार का हर्ष या विषाद नहीं होता ।
जिन वस्तुओं को हम मंत्र, जड़ी-बूटियों आदि से व्यक्त करते हैं वे होने के बाद कुछ समय तक दिखायी देती हैं और बाद में अदृश्य हो जाती हैं । इन दृष्टान्तों द्वारा पाठकों को यह समझाया जा रहा है कि हमारे जीवन में प्रकट तथा लुप्त होने वाले विविध पदार्थ उसी मात्रा में वास्तविक कहे जा सकते हैं जिसमें जादू द्वारा दिखाये जाने वाले पदार्थ या मन्त्र, एवं जड़ीबूटियों आदि के बल से प्रत्यक्ष किये जाने वाले विविध दश्य । ___संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि जाग्रतावस्था के सभी नाम-रूप पदार्थ (जीव), जो हमें जन्म लेते, बढ़ते, रुग्ण होते क्षय तथा मृत्यु आदि को प्राप्त करते दिखायी देते हैं, वस्तुतः हमारे मन की ही उपज हैं । उनमें वास्तविकता का लेशमात्र नहीं होता।
न कश्चिज्जायते जीवः संभवोऽस्य न विद्यते ।
एतदुत्तमं सत्यं यत्र किंचिन्न जायते ॥७१॥ किसी प्रकार का जीव जन्म नहीं लेता और न ही ऐसी किसी सृष्टि का कोई कारण है । सर्व-सिद्ध यथार्थता यह है कि किसी का कभी जन्म नहीं होता।
तीसरे अध्याय के ४८वें मन्त्र की यहाँ पुनरावृत्ति की गयी है । श्री गोड़पाद के सिद्धान्त का यह मूल-मन्त्र है । “निदेशिका" में पुनरावृत्ति को अनिष्ट नहीं माना जाता क्योंकि इसमें अपरिचित तथ्यों को बलपूर्वक समझाया जाता है जिससे विद्यार्थी इसे पूर्ण रूप से जान लें । इस मन्त्र पर तीसरे अध्याय के अन्तिम मन्त्र में पूरा प्रकाश डाला जा चुका है ।
चित्तस्पन्दितमेवेदं ग्राह्यग्राहकवद्धयम् । चित्तं निविषयं नित्यमसंगं तेन कीर्तितम् ॥७२॥
त ॥७
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