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'मिथ्या' जल मरुस्थल की सिम्ता (रेत) को गीला कर सकता है ? हम यह नहीं कह सकते कि एक वन्ध्या-पुत्र इन्द्र-धनुष की सहायता से किसी राज्य को जीत सकता है क्योंकि उसके लिए तो एक भी वाण चलाना सम्भव नहीं है ।
ऐसे ही जाग्रतावस्था, जो स्वयं मिथ्या है, एक भ्रान्तिपूर्ण अवस्था की ही उत्पत्ति कर सकती है । इस प्रकार यह युक्ति कि जाग्रतावस्था की प्रतिक्रिया हमारी स्वप्नावस्था है केवल उन दार्शनिकों द्वारा मानी जा सकती है जो सदा स्वप्न-जगत् में विचरते रहते हैं।
उत्पादस्याप्रसिद्धत्वादजं सर्वमुदाह तम् ।
न च भूतादभूतस्य संभवोऽस्तिकथंचन ॥३८॥ ये सब अजात माने जाते हैं क्योंकि सृष्टि अथवा विकास की पुष्टि नहीं की जा सकती । वास्तविक पदार्थ से अवास्तविक पदार्थ का जन्म होना कभी सम्भव नहीं ।
जिन व्यक्तियों ने श्री गौड़पाद की इस घोषणा पर यह सन्देह प्रकट किया कि जाग्रतावस्या उसी प्रकार अवास्तविक है, जैसे क्षणस्थायी स्वप्न, उनकी इस भ्रान्ति का इस मंत्र में ऋषि द्वारा निराकरण किया जाता है। ये महाशय जाग्रतावस्था के अधिक वास्तविक होने का दावा करते हैं और इसे स्वप्न की अवस्था से कहीं अधिक यथार्थ एवं स्थायी मानते हैं । इनकी धारणा है कि ज्योंही हम स्वप्न-जगत् से बाहर निकलते हैं त्योंही हमें जाग्रत-संसार की अनुभूति होने लगती है ।
इस सम्बन्ध में भगवान् शंकराचार्य का यह मत है कि 'यह धारणा केवल विवेक-हीन व्यक्ति कर सकते हैं ।" यह युक्ति तो उन विभिन्न स्वप्नों के लिए चरितार्थ हो सकती है जिनका एक जाग्रत प्राणी समय समय पर अनुभव करता रहता है; किन्तु एक स्वप्न देख चुकने के बाद कोई व्यक्ति जागने पर उसी स्वप्न को अनुभव कर सकता है। ऐसे ही हमारी जाग्रतावस्था के स्वप्न, जिन्हें देखते हुए हमारा जीवात्मा निष्क्रिय रहता है, हमें स्वप्निल जाग्रतावस्था की अनुभूति कराते रहते हैं। जाग्रत एवं स्वप्न-अवस्था
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