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( २६७ )
अपने आप को उस जगह पायेगा जहाँ वह स्वप्न देख रहा था अर्थात् वह उस स्थान पर नहीं होगा जहाँ वह गत रात्रि सोया था ? स्वप्न द्रष्टा वस्तुतः अपने वास्तविक कमरे में ही लेटा हुआ जगता है न कि उस व्यक्ति के घर में जिसे वह स्वप्न में देख रहा था । इससे हम यह परिणाम निकालते हैं कि स्वप्न देखने वाला और कहीं नहीं जाता ।
मित्रावैः सह संमन्त्र्य संबुद्धो न प्रपद्यते ।
गृहीतं चापि यत्किंचित् प्रतिबुद्धो न पश्यति ॥ ३५ ॥ स्वप्न में अपने मित्रादि से जो बातचीत होती है उसे स्वप्नद्रष्टा निद्रा से जागने पर मिथ्या समझता है । साथ ही निद्रा खुलने पर उसके पास वह वस्तु नहीं होती जो उसे स्वप्न में मिली थी ।
इस मंत्र द्वारा श्री गौड़पाद इस तथ्य को प्रकट करते हैं कि स्वप्नद्रष्टा न तो कहीं और जाता है और न ही दिखायी देने वाले व्यक्ति अथवा पदार्थों के संपर्क में आता है । बात यह है कि उसके मन की सोई हुई वासनाएँ जग कर उसे नाना प्रकार के अनुभव कराती रहती हैं । ऋषि कहते हैं कि स्वप्न में मित्र आदि से भेंट करने वाला मनुष्य जगने पर उन सभी अनुभूतियों को अवास्तविक मानने लगता है । स्वप्न में मैंने जिस बन्धक पर अपने हस्ताक्षर किये थे वह (बन्धक) जाग्रत संसार द्वारा मान्य नहीं हो सकता । स्वप्न में अपनी प्रेयसी को विवाह का मैं जो वचन देता हूँ उस (वचन) का जागने पर पालन करना मेरे लिए बाध्य नहीं है क्योंकि स्वप्व में व्यावहारिक क्रिया नहीं होती; केवल मेरे मन द्वारा रचित संसार की अनुभूति होती है ।
यदि स्वप्न में मुझे कोई उपहार प्राप्त हुआ है तो उससे मुझे जाग्रतजीवन में कोई लाभ नहीं पहुँच सकता । सोये होने पर यदि कोई राजा मुझे अपना मंत्री बना लेता है तो निद्रा का त्याग करने पर मुझे यह घटना स्पष्ट रूप से स्मरण तो रहेगी किन्तु यदि मैं व्यावहारिक रूप में मंत्री के
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