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( १२१ )
स्थूल संसार तथा सूक्ष्म जगत् में भेद दिखाने के उद्देश्य से अब एक और शंका उठायी जातं है । वह यह है कि यदि इन दोनों (अवस्थाओं) की तुलना की जाए तो इन में कम से कम यह भेद तो अवश्य पाया जायेगा कि जाग्रत-संसार व्यक्त है और स्वप्न-जगत पूर्ण रूप से अव्यक्त है। अतएव ऐसा दिखायी देता है कि अालोचक प्रत्यक्ष संसार में वास्तविकता कहीं अधिक मात्रा में पाता है।" . इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यहाँ श्री गौड़पाद ने कहा है कि ये दोनों अवस्थाएँ, चाहे वे व्यक्त है अथवा अव्यक्त. कल्पनामात्र है । हम इनको व्यक्त या अव्यक्त इस कारण देखते हैं कि इन्हें अनुभव करने वाला हमारी इन्द्रियाँ विभिन्न है । हमारे भीतरी जगत् के विचार अव्यक्त होते है किन्तु जब ये प्रकट रूप में आते हैं तब इन्हें हमारी ज्ञानेन्द्रि याँ ग्रहण करता तथा समझती है । स्वप्न-जगत् में दिखायी देने वाले पदार्थ अस्सष्ट, आवेष्ठित तथा सारहीन प्रतीत होते है क्योंकि इन्हें पहचानने का एकमात्र उपकरण मन होता है और उस में भो नियंत्रण एवं विवेक शक्ति का अभाव होता है ।
इसके विपरीत 'जाग्रत' संसार के स्थूल-पदार्थ अपेक्षतः अधिक स्पष्ट, वास्तविक और सारयुक्त मालूम देते हैं क्योंकि 'जागने वाला' इन्हें ज्ञानेन्द्रियो के द्वारा विशेष रूप से पहचानता है । इन इन्द्रियों के कार्य में हमारी सक्रिय विवेक-बुद्धि भी सहायक होती है । जब हमारी क्रियमाण विवेक-शक्ति इन शक्तिशाली उपकरणों को सहायता से बाह्य-पदार्थों को अनुभव करता है तब हमे ये स्वभावतः अधिक स्पष्ट रूप में दिखायी देते हैं जिस कारण हम इन वस्तुओं की वास्तविकता में अधिक विश्वास रखते हैं । वस्तुतः इन दोनों में समानता पायी जाती है और वह है इस का मिथ्या होना क्योंकि इनकी उत्पत्ति हमारे मन के खेल के कारण ही होती है।
जीवं कल्पयते पूर्व ततो भावान्पृथग्विधान् । बाह्यानाध्यात्मिकांश्चैव यथा विद्यस्तथा स्मृतिः ॥१६॥ पहले-पहल 'जीव-भावना' की कल्पना होती है और तत्पश्चात्
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