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( १५१ )
द्वारा कार्य की उत्पत्ति नहीं हो सकती । जब हम कार्य की किसी कारण से उत्पत्ति मानने के लिए तैयार नहीं तब विवश हो कर द्वैतवादी अजातबाद का समर्थन करने लगते हैं क्योंकि यदि इस पदार्थमय संसार को 'कार्य' मान लिया जाय तो ( श्री गौड़पाद कहते हैं ) द्वैतवादी उस निश्चित् कारण को क्यों नहीं बताते जिससे इन तथाकथित कार्यों का प्रादुर्भाव हुआ है ।
स्वतो वा परतो वापि न किञ्चिद्वस्तु जायते । सदसत्सदसद्वाऽपि न किञ्चिद्वस्तु जायते ॥२२॥
कोई वस्तु अपने प्राप किसी और ( वस्तु) से या अपने आप तथा दूसरी वस्तु से उत्पन्न नहीं होती है । किसी वस्तु की उत्पत्ति नहीं होती चाहे वह 'सत्' हो अथवा 'असत्' या 'सत्' तथा 'असत्' ।
तथा न्याय-वैशेषिक विचार धाराओं के तर्कों पर दृष्टिपात करते हुए श्री गौड़पाद अब वेदान्त के इस निष्कर्ष की पुष्टि करते हैं कि किसी वस्तु की उत्पत्ति नहीं होती । इस सम्बन्ध में ऋषि उन छः संभावनाओं का उल्लेख करते हैं जिनसे सृष्टि की उत्पत्ति हो सकती थी । अन्त में इनमें कोई तथ्य न पाने के कारण वह कहते हैं कि वास्तव में इस (सृष्टि की कोई उत्पत्ति नहीं हुई ।
'जल' से एक 'कुर्सी'
कोई वस्तु 'स्वतः' उत्पन्न नहीं होती । एक पात्र से दूसरे पात्र की उत्पत्ति नहीं होती । मेरा जन्म मुझ से नहीं हुआ । एक वस्तु की उत्पत्ति किसी भिन्न वस्तु ( परत: ) से नहीं हो सकती, जैसे प्राप्त नहीं की जा सकती और न ही हम किसी पात्र से ऐसे ही कोई वस्तु 'अपने श्राप और दूसरे से उत्पन्न नहीं यह परस्पर विरोधी बात है । एक पात्र और वस्त्र मिल
वस्त्र पा सकते हैं ।
हो सकती क्योंकि
कर एक अन्य पात्र
तथा वस्त्र की उत्पत्ति नहीं कर सकते ।
इस व्याख्या को समक्ष रखते हुए सम्भवतः कुछ विरोधी कदाचित्
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