________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( १५५ )
इस कोटि का सिद्ध पुरुष प्राध्यात्मिक शक्ति का विद्युत केंद्र होता है । वास्तव में वह पदार्थ -संसार में जो चाहे कर सकता है यदि वह कभी भावावेष में आता है तो केवल अपनी पीढ़ी के सामूहिक प्रारब्ध में हस्तक्षेप करने के लिए; ताकि प्रकृति की व्यापक व्यवस्था में यथेष्ठ परिवर्तन हो सके |
यदि इन महान व्यक्तियों द्वारा भावुकता का प्रदर्शन हो तो अल्पकाल में ही इसका हृदय उदारता से पूर्ण हो जाता । ग्राप जानते ही हैं कि हृदय का विस्तार कितना खतरनाक होता है । जहाँ हृदय का इतना विस्तार हो और यह अपनी विशेषताओं को ही ढाँप ले वहाँ विवेक का अवरोध होना स्वाभा for है । यदि मनुष्य के व्यक्तित्व के किसी एक पहलू में अधिक वृद्धि हो तो उसकी सुव्यवस्थित वृद्धि नहीं हो पाती । यहाँ प्राचार्य इस बात को दृढ़ता से समझाना चाहते हैं कि ग्रात्मानुभूति के बाद साधक को भौतिकता की ओर तनिकमात्र ध्यान न देना चाहिए ।
रूपक की दृष्टि में निष्क्रियता मनुष्य के लिए अत्यन्त कल्याणकारी है यदि इसे यथार्थ रूप से समझने का यत्न किया जाय । भौगोलिक विचार से पर्वत, वन, मरुस्थल और मैदान देश के लिए विशेष महत्व रखते हैं । ये सब प्रत्यक्षतः निष्प्राण होते हुए भी मनुष्यमात्र के लिए कल्याणकारी होते है ।
इस प्रकार एक ज्ञानी के लिए खुलमखुल्ला समाज पर प्रभाव डालना तथा क्रान्तिकारी स्थिति को लाना इतना आवश्यक नहीं और न ही उसे साम्प्रदायिक, सामाजिक, राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय उलझनों में फँसना चाहिए । उनका परम कर्त्तव्य है कि वे सामयिक तथा ऐतिहासिक घटनाओं पर अपनी अमूल्य शक्ति का अपव्यय न करें । ग्राध्यात्मिक अंश एवं ईश्वरीय सत्ता वाले इन महान् सिद्धों द्वारा जीवन के मूल सत्य का प्रकाश किया जाना चाहिए । उनकी ध्येय-पूर्ति तभी होगी जब वे अपनी पीढ़ी का सांस्कृतिक विकास करने के साथ प्राध्यात्मिक प्रगति में समुचित पथ-प्रदर्शन करें । निस्तुतिनिनमस्कारो निःस्वधाकार एव च । चलाचल निकेतश्च यतिर्यद्दिच्छिको भवेत् ||३७|| ग्रात्मजित् यति को स्तुति, मान-प्रतिष्ठा और प्रत्येक धर्म
For Private and Personal Use Only