________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
चौथा अध्याय
'अलात शान्ति' इस समूचे ग्रन्थ में यह अध्याय विशेष महत्त्व रखता है । कुछ पालोचकों न इस अध्याय के महत्व को कम करने का प्रयास किया है। हम उनके विचार से सहमत नहीं हो सकते । वे कहते हैं कि यह अध्याय एक स्वतंत्र ग्रन्थ है क्योंकि इसमें सबसे पहले 'स्तुति' दी गयी है । उनके विचार में चौथा अध्याय एक अलग पुस्तक है जिसे इस ग्रन्थ में शामिल कर लिया गया है । इस बात को मानना किसी प्रकार युक्ति-युक्त नहीं। कुछ लोग तो यहाँ तक कहने लगे हैं कि 'गौड़पाद कारिका' किसी एक विद्वान् की कृति नहीं है बल्कि वेदान्त पर लिखे चार ग्रन्थों को मिला कर उन्हें इस पुस्तक का रूप दे दिया गया है । माता 'श्रुति' की वेदी पर इन चार अध्यायों के मनोहर सुमनों को पिरो कर श्री शंकराचार्य ने जो अनुपम माला चढ़ायी है उससे यह धारणा बहुत हद तक निराधार सिद्ध होगयी है ।
प्रोफ़ेसर भट्टाचार्य की यह युक्ति हमें मान्य नहीं है कि 'स्तुति' से प्रारम्भ होने के कारण यह अध्याय एक स्वतंत्र धर्मग्रन्थ है क्योंकि संस्कृत साहित्य की कई कृतियों में प्रायः अध्याय 'स्तुति' से प्रारम्भ होता है ।
इस सम्बन्ध में एक युक्ति यह दी जाती है कि इस अध्याय में पहले तीन अध्यायों के बहुत से मंत्रों की पुनरावृत्ति की गयी है । एक उपदेश ग्रन्थ म ऐसा होना कोई दोष नहीं माना जाता । ऋषि का उद्देश्य कई बहुत आवश्यक बातों पर बल देना है । उनका विषय इतना सूक्ष्म है कि छात्र बातों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । संस्कृत के दर्शन-ग्रन्थों में पूनरावत्ति एक आवश्यक अंग माना जाता है । यह 'कारिका' एक 'उपदेश-ग्रन्थ' है। कई
( २३० )
For Private and Personal Use Only