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( २५. )
कारण और कार्य क्रमागत नहीं, वरन् एक साथ घटित होते हैं, तब उनका कोई पारस्परिक सम्बन्ध नहीं हो सकता क्योंकि एक ही समय बढ़ते रहने वाले गाय के दो सींगों में किसी तरह का कारण-सम्बन्ध स्थापित करना एक असंभव बात है । किसी पशु के सींगों की भांति ऐसे दो तथ्यों के बीच कोई सम्बन्ध नहीं रह सकता । इन सींगों का एक साथ प्रादुर्भाव होता है और ये समान रूप से बढ़ते रहते हैं ।
इस 'कारिका' में 'काल' की दृष्टि से कारण के विचार का खण्डन किया गया है।
फलादुत्पद्यमानासन्न ते हेतुः प्रसिध्यति । - अप्रसिद्धः कथं हेतुः फलमुत्पादयिष्यति ॥१७॥
यदि कार्य से कारण की उत्पत्ति होती है तो कारण को सिद्ध नहीं किया जा सकता । यदि कारण स्वतः सिद्ध नहीं होता तो वह कार्य को किस प्रकार उत्पन्न कर सकता है ?
उस 'कारण' की कोई निश्चित सत्ता नहीं हो सकती जिसकी उत्पत्ति ऐसे कार्य से होती है जो अव्यक्त होते हुए मृग-तृष्णा के जल की भांति विद्य. मान नहीं होता । इस 'कारिका' में यह कहा गया है कि कारण-सम्बन्ध स्वतः तर्कहीन एवं प्रयुक्त है।
__ कारण-सम्बन्ध में विश्वास रखने वाले कहते हैं कि एक दूसरे की उत्पत्ति के लिए कारण और कार्य अन्योन्याश्रित रहते हैं । वैसे कारणत्व का सामान्य सिद्धान्त यह है कि कारण की सत्ता कार्य से पहले रहती है और इस के बाद कारण-कार्य क्रम चलता रहता है ।
द्वैतवादियों की कोई भी युक्ति विशुद्ध ज्ञान की कसौटी पर पूरी नहीं उतरती।
यदि हेतोर्फलात्सिद्धिः फलसिद्धिश्च हेतुतः । कतरत्पूर्वनिष्पन्नं यस्य सिद्धिरपेक्षया ॥१८॥ यदि कार्य से कारण और फिर कारण से कार्य को उत्पत्ति
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