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वेदान्त के इस कोटि के मंत्रों के रहस्य का विश्लेषण करने तथा इन्हें भली-भाँति समझने के लिए एक साधारण विद्यार्थी को गुरु द्वारा सहायता मिलनी अनिवार्य है | आजकल के मुद्ररण- प्रधान युग में पुस्तकों की भरमार है जिससे इन ग्रन्थों को किसी पुस्तक भण्डार से खरीदा जा सकता है । आधुनिक शिक्षित एवं सुपठित नवयुवक ऐसे मंत्रों को पढ़ते ही यह आत्मघाती परिणाम निकाल लेते हैं कि वे स्वयं सत्य सनातन हैं । अतः उन्हें किसी दिशा में प्रयत्नशील होने की आवश्यकता नहीं है ।
कुछ होने की धारणा कर बैठना एक ख़तरे वाली बात है क्योंकि प्रत्येक दिशा में अपूर्ण होने के कारण हमें अभी अनेक उपायों द्वारा अपने आप को सुधारना है । इस प्रसंग में इस श्रेणी के मंत्रों को, जो महानाचार्यों के आन्तरिक जीवन पर प्रकाश डालते हैं, हमारे लिए अच्छी तरह समझना अत्यन्त श्रावश्यक है । इस दिशा में हमारा पथ-प्रदर्शन केवल वे आधुनिक गुरु कर सकते हैं जिन्होंने स्वयं इस मार्ग पर चल कर 'सत्य' को अनुभव किया है ।
यहाँ हमें इस बात को स्मरण रखना चाहिए समान स्तर पर आकर ग्रपने दृष्टिकोण को समझाने का प्रयास श्री गौड़पाद ने बहुत कम बार किया है । उन्होंने अपने शिष्यों के स्तर पर आकर अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए कभी उत्साह नहीं दिखाया । इसके विपरीत उच्च स्तर पर खड़े रहकर ऋषि ने अपने शिष्यों को सदा उनके अपने उन्नत दृष्टिकोण को समझने का प्रोत्साहन दिया है । उनके परमोपदेश का सार यह है कि हम 'सत्य' के मार्ग का अनुसरण करके अपने वास्तविक ध्येय 'सत्य' की प्राप्ति करें । प्रादिअन्त पर्य्यन्त श्री गौड़पाद ने इस सत्य-मार्ग की व्याख्या 'सत्य' से प्रोत-प्रोत भाषा द्वारा की है । इसलिए 'कारिका' को पूरी तरह समझने के लिए इस दिव्य भाषा तथा अविद्या की भाषा को जानने वाले व्यक्तियों के लिए टीकाटिप्पणी से परिचित होना नितान्त आवश्यक है ।
वास्तविक-तत्व के दृष्टिकोण से प्रस्तुत मन्त्र यथार्थता को लिये हुए है ।
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